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कहानी ‘डीटीपी ऑपरेटर’ से ब्लैकमेलर के बनने तक की…

I Watch India: लखनऊ। बीबी की कमाई पर पलने वाले फेल-फ्लाप और बेरोजगार डीटीपी ऑपरेटर की प्रबल इच्छा है कि राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त पत्रकार बनने की। इस इच्छा को परवाना चढ़ाया पत्रकारिता का चोला ओढ़े ‘ब्लैकमेलरों के एक गैंग’ ने। इस गैंग के इशारे पर सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के आला अफसरों और वरिष्ठï पत्रकारों के खिलाफ झूठी और फर्जी खबरें भड़ास फार जर्नलिस्ट डाट काम पर प्रकाशित कर छवि धूमिल करने की मुहिम छेड़ रखी है। तमाम शरीफ अफसर और पत्रकार डीटीपी ऑपरेटर द्वारा चलाई जा रही छवि बिगाड़ों करतूत को अपमान का घूंट पीकर रह गए हैं। पत्रकारिता के नाम पर चल रहे ‘ब्लैकमेलरों के गैंग’ के कारनामों को जनता और शासन व प्रशासन को रूबरू कराने के लिए एक सीरिज शुरू की जा रही है। जिससे ‘ब्लैकमेलरों के गैंग’ सरकार कार्रवाई कर सके।

‘ब्लैकमेलरों के गैंग’ की यह है मॉडस अपरेंडी

उल्लेखनीय है कि बीते एक दशक से राजधानी में आरटीआई एक्टिविस्ट, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट, तथाकथित पत्रकार, वकालत के पेशे को बदनाम करने वाले  कुछ अपराधिक रिकार्ड वाले वकीलों आदि का एक गैंग कुकुरमुत्ते की तरह उभर आया है। इस गैंग की मॉडस अपरेंडी यह है कि कमाई वाले विभाग, गणमान्य नागरिक, अफसर और पत्रकारों आदि को टारगेट करते हैं। इस गैंग के अधिकतर सदस्य का कार्यक्षेत्र हुसैनगंज और सचिवालय है। इस गैंग के सदस्य किसी भी सरकारी विभाग में सैकड़ों की संख्या में आरटीआई लगाकर सूचनाएं प्राप्त करते हैं। सूचना अधिनियम से प्राप्त सूचनाओं का उपयोग अपने टारगेट की आईजीआरएस पोर्टल पर शिकायत कर करते हैं। इसके बाद कोर्ट में 156 (3) के मुकदमें पंजीकृत करवा कर अपमानित करवाने का खेल करते हैं। यह गैंग सब वसूली के लिए करता है। इस तरह के सैकड़ों मामले राजधानी के विभिन्न थानों में पंजीकृत हैं।

पुलिस रेडियो मुख्यालय में रेडियो ऑपरेटर के संवेदनशील पद पर तैनात है पत्नी

प्राप्त सूचनाओं के आधार पर ‘ब्लैकमेलरों के गैंग’ का सक्रिय सदस्य भड़ास फार जर्नलिस्ट डाट काम का कर्ता-धर्ता श्यामल कुमार त्रिपाठी है। वैसे तो यह शख्स की पैदाइश एक शरीफ खानदान में हुई। घरवालों ने इसकी गैरजिम्मेदाराना हरकतों से अजीज होकर एक नौकरी पेशा से शादी करवा दी। इसकी पत्नी पुलिस रेडियो मुख्यालय में रेडियो ऑपरेटर के संवेदनशील पद पर तैनात हैं। कुछ अखबारों में डीटीपी ऑपरेटर बना। वहीं से मान्यता प्राप्त पत्रकार बनने का चस्का लगा।

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प्रिंटिंग प्रेस का फर्जीवाड़ा

इस चस्के को साकार करने के लिए 2009 में आई वॉच नामक एक साप्ताहिक द्विभाषी अखबार का रजिस्ट्रेशन करवाया। जिसका रजिस्ट्रेशन नम्बर यूपीबीआईएल/2009/03429 है। आई वाच साप्ताहिक अखबार के घोषणा पत्र में फर्जीवाड़ा करते हुए प्रिंटिंग प्रेस टिन टिन प्राइवेट लिमिटेड दिखाया है। इस सबके बावजूद सफल न होने पर बीते दो साल के दौरान श्यामल कुमार त्रिपाठी ‘ब्लैकमेलरों के गैंग’ के सम्पर्क में आया। इस सम्पर्क के बाद इस बेरोजगार डीटीपी ऑपरेटर की शानो-शौकत में तेजी से इजाफा हुआ। लाखों रुपए के महंगे फोन, सोने की घड़ी-चेन, भोग-विलासित पूर्ण जीवन जी रहा है।

मान्यता हासिल करने के लिए सूचना विभाग और पत्रकारों के खिलाफ लिखी फर्जी खबरें

पत्रकार के नाम पर सचिवालय और शासन सत्ता में प्रवेश करने के लिए राज्य मुख्यालय मान्यता भड़ास फार जर्नलिस्ट डाट के जरिए श्यामल कुमार त्रिपाठी ने सबसे पहले सूचना एवं जनसम्र्पक विभाग के निदेशक और अपर निदेशक पर दबाव बनाने और बदनाम करने वाली झूठी और फर्जी खबरों का प्रकाशन किया।

भड़ास फॉर जर्नलिस्ट डॉट कॉम पर प्रकाशित यूआरएल मात्र बानगी है। यह किस तरह से आम जनता, अधिकारियों और पत्रकारों पर निशाना साधते हैं। इन फर्जी खबरों के जरिए अधिकारियों और पत्रकारों पर मान्यता दिलवाने के लिए दबाव बनाया। जिससे सचिवालय में इंट्री कर अपनी दलाली और ब्लैकमेलिंग के कारोबार को चमकाया जा सके। इस संबंध में भड़ास फार जर्नलिस्ट डाट के कर्ता-धर्ता श्यामल कुमार त्रिपाठी ने कहा कि मैं किसी गैंग का हिस्सा नहीं हूं। मेरे ऊपर लगे सभी आरोप बेबुनियाद हैं।

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