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GST : खाने की जरूरी चीजों पर 5% GST लगाने के फैसले से व्यापारी परेशान, सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन की तैयारी

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GST : प्री-पैक और प्री-लेबल वाले खाद्यान्न, दही, बटर मिल्क आदि आवश्यक चीजों पर 5 फीसदी जीएसटी (GST) लगाने के फैसले का विरोध होना शुरू हो गया है.

देश के व्यापारिक समुदाय, खाद्यान्न और एपीएमसी एसोसिएशनों ने जीएसटी काउंसिल द्वारा लिए गए इस फैसले की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि इस फैसले से व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा. इस फैसले से प्रभावित व्यापारिक सेक्टर के व्यापारी, देश के हर राज्य में जोरदार प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं. लिहाजा, आने वाले समय में खाद्यान्न व्यापार के भारत बंद की संभावनाएं बढ़ गई हैं.

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फैसले के खिलाफ संपर्क में हैं देशभर के व्यापारी संगठन

कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जीएसटी काउंसिल, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एवं सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों से ये फैसला वापस लेने की अपील की है. कैट की मांग है कि जब तक जीएसटी काउंसिल में यह निर्णय अंतिम रूप से वापस नहीं हो जाता, तब तक इस निर्णय को स्थगित रखा जाए. देशभर के खाद्यान्न व्यापारी संगठनों के व्यापारी नेता इस मुद्दे पर एक संयुक्त रणनीति बनाने के लिए लगातार बातचीत कर रहे हैं.

फैसले के लिए कैट ने राज्यों के वित्त मंत्रियों को ठहराया जिम्मेदार

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी. सी. भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने काउंसिल के इस निर्णय की कड़ी निंदा करते हुए, इस तरह के अतार्किक निर्णय के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों को जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि काउंसिल में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया और सभी राज्यों के वित्त मंत्री काउंसिल के सदस्य हैं. इस निर्णय का देश के खाद्यान्न व्यापार पर अनुचित प्रभाव पड़ेगा और देश के लोगों पर आवश्यक वस्तुओं को खरीदने पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा.

व्यापारियों के साथ-साथ किसानों पर भी पड़ेगा बुरा असर

दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा कि आश्चर्यजनक रूप से भारत में पहली बार आवश्यक खाद्यान्नों को टैक्स के दायरे के तहत लिया गया है, जिसका न केवल व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा बल्कि कृषि क्षेत्र पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इस फैसले से छोटे निर्माताओं और व्यापारियों की कीमत पर बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा.

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जीएसटी कलेक्शन बढ़ने के बावजूद क्यों लगाया जा रहा है टैक्स

प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि विरोध के पीछे तर्क यह है कि सरकार कुछ वस्तुओं पर केवल 28 प्रतिशत जीएसटी वसूल रही है ताकि कृषि उपज को जीएसटी से बाहर रखने के बदले राजस्व नुकसान की भरपाई की जा सके. अगर जीएसटी काउंसिल गैर-ब्रांडेड दालों और अन्य कृषि वस्तुओं पर टैक्स लगाना चाहती है तो सबसे पहले 28 फीसदी जीएसटी स्लैब को समाप्त करना होगा. इसके अलावा ऐसे समय में जब हर महीने जीएसटी कलेक्शन बढ़ रहा है तो खाद्य पदार्थों को जीएसटी के तहत 5 प्रतिशत के टैक्स स्लैब के तहत लाने की क्या जरूरत है? बताते चलें कि ये आइटम अभी तक किसी भी टैक्स स्लैब के तहत नहीं थे.

देश के तमाम राज्यों में होगी बैठक

दोनों नेताओं ने कहा कि अब तक दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा में राज्य स्तरीय बैठक हो चुकी हैं और अगले सप्ताह पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात में व्यापार जगत के नेता मिलेंगे. इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में भी बैठकें होंगी. कैट ने कहा, ”ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्यों के वित्त मंत्री, खाद्यान्न और अन्य वस्तुओं में काम करने वाले छोटे निर्माताओं और व्यापारियों के हितों की रक्षा करने में विफल रहे हैं.”

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