देवरिया में किसानों को है चीनी मिल खुलने का इंतजार
देवरिया। कभी चीनी के कटोरे के तौर में पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले देवरिया के गन्ना किसानों का चीनी मिल खुलने का इंतजार लंबा होता जा रहा है। एक जमाने में देवरिया, बैतालपुर, गौरीबाजार, भटनी और प्रतापपुर में चीनी मिलें जिले की शान में चार चांद लगाती थी लेकिन समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के शासनकाल में एक के बाद एक चार चीनी मिलें बदहाली की भेंट चढ़ कर बंद हो गयी जिन्हे बाद में औने पौने दाम पर बेच भी दिया गया। जिले में फिलहाल एशिया की सबसे पुरानी चीनी मिल प्रतापपुर की चल रही है। 2017 में प्रदेश की सत्ता में आयी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने यहां के किसानो को कम से कम एक चीनी मिल खोलने का वादा किया मगर पांच साल बीतने के बाद भी वह वादा आज भी अधूरा है।
गन्ना किसानो का दर्द है कि चुनाव के समय सभी राजनीतिक दल गरीब किसान के मुद्दे पर बात तो करते है लेकिन देवरिया में बंद कर बेच दी गई चीनी मिलों के बारे में कोई भी मुखर नहीं होता, नतीजन यहां का गन्ना किसान बदहाली की कगार पर पहुंच चुका है। चार चीनी मिलों को चलाने का मुद्दा हर चुनाव में गर्म होता रहा है लेकिन चुनाव के बाद यह मुद्दा ढाक के तीन पात हो जाता है। यहां के लोगों का कहना है कि ऐसा कोई भगीरथ नहीं आया कि जो बंद चीनी मिलों को चालू कराते हुए किसानों की खुशहाली लौटाए।
चीनी मिलों के बंद होने का असर गन्ने की खेती पर साफ दिख रहा है। जब सभी चीनी मिलें चलती थी तो अकेले देवरिया जिले में ही गन्ने का रकबा करीब 40 हजार हेक्टेयर था जो अब यह घटकर दस हजार से भी कम हो गया है। गन्ने का रकबा घटने से किसानों की आर्थिक स्थिति पर भी गड़बड़ हुई है। धान-गेहूं की संयुक्त खेती से भी किसान इतनी आय नहीं कर पा रहे, जितना गन्ने की एक खेती से साल भर में कमा लेते थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां एक सभा में कहा था कि देवरिया में एक चीनी मिल की स्थापना कराई जायेगी लेकिन यह कब होगा यह आने वाला समय बतायेगा।