Bal Vikas Pustahar Yojana: दम तोड़ रही है टेक होम राशन योजना
योगी सरकार नहीं तोड़ पाई आईसीडीएस के राशन माफियों की कमर!
- Bal Vikas Pustahar Yojana
- टीएचआर का उत्पादन ठंडा, नैफेड का बढ़ा धंधा
- करोड़ों खर्च, रिजल्ट जीरो
लखनऊ। बच्चों, किशोरी बालिकों और गर्भवती महिलाओं को स्वास्थवर्धक रेसिपी बेस्ड पुष्टाहार उपलब्ध कराने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुपोषित (टेक होम राशन) महत्वकांक्षी योजना लालफीता शाही का शिकार हो गई है। इस रेसिपी बेस्ड पुष्टाहार को तैयार करवाने के लिए 300 महिला स्वयं सहायता समूह द्वारा 43 जिलों में स्थापित की गई 204 उत्पादन इकाइयां (टीएचआर) मात्र 30 फीसदी आपूर्ति कर पा रही हैं। बाकी 70 फीसदी पुष्टाहार नैफेड के माध्यम से खरीदा जा रहा है। इस योजना पर खर्च किए जा रहे करोड़ों रुपए का बजट पर पानी फिरने की उम्मीद है। इससे सरकार की ग्रामीण महिलाओं को संबल करने और पुष्टाहार आपूर्ति के लिए कुख्यात फर्मों के काकस पर अंकुश लगाने की मंशा को तगड़ा झटका लगा है। सबसे रोचक तथ्य यह है कि इस योजना को साकार करने के लिए सरकार ने महिला मंत्री से लेकर कई महिला आईएएस अफसरों को तैनात कर रखा है। इसके बावजूद न तो अनुपूरक पुष्टाहार में सड़ा-गला और कीड़े युक्त गेंहू का प्रयोग रूक पा रहा है और न ही घटतौली रूक पा रही है। जिससे महिला मंत्री और महिला आईएएस अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
15 से 30 प्रतिशत है टीएचआर का उत्पादन
उल्लेखनीय है कि मार्च 2021 में पायलेट प्रोजेक्ट के तहत फतेहपुर और उन्नाव 2 टीएचआर इकाईयां स्थापित की गई थी। पहले इन इकाईयों को स्थापित करने के पीछे मंशा वेलफेयर मॉडल की थी। लेकिन बाद में यह बिजनेस मॉडल में बदल गया। लेकिन ये टीएचआर इकाईयां अपनी 100 प्रतिशत उत्पादन क्षमता में से मात्र 15 से 30 फीसदी ही कर पा रही हैं। पहले स्थापित की गई इकाईयों का फीडबैक लिए राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के निदेशक ने आनन-फानन में 12 अगस्त 2021 को अलीगढ़, अम्बेडकर नगर, औरैया, आगरा, अमेठी, आजमगढ़, बागपत, बांदा, बदायूं, बहराइच, बलरामपुर, बाराबंकी, बस्ती, बिजनौर, चंदौली, चित्रकूट, देवारिया, फतेहपुर, गोरखपुर, हमीरपुर, हरदोई, इटावा, जालौन, झांसी, कन्नौज, खीरी, लखनऊ, ललितपुर, मैनपुरी, मिर्जापुर, महाराजगंज, महोब, प्रतापगढ़, प्रयागराज, सुल्तानपुर, सहारनपुर, संत कबीर नगर, शामली, श्रावस्ती, सिद्वार्थ नगर, सोनभद्र, उन्नाव और वाराणसी में स्थापित करने का निर्णय लिया गया। अधिकतर टीएचआर इकाईयों में उत्पादन क्षमता से 15 से 30 प्रतिशत तक ही उत्पादन हो रहा है। हरदोई, आजमगढ़, फतेहपुर, मिर्जापुर, बिजनौर, कन्नौज, बांदा, झांसी, बलरामपुर, अलीगढ़, हमीरपुर, उन्नाव, बहराइच, ललितपुर, सहारनपुर, श्रावस्ती, चित्रकूट की टीएचआर इकाईयों में मात्र 30 प्रतिशत का उत्पादन हो रहा है। जबकि जालौन, लखीमपुर खीरी, प्रयागराज, लखनऊ, शामली, बाराबंकी, देवारिया, बंदायू, आगरा, बस्ती, बागपत, संतकबीर नगर, चंदौली, मैनपुरी, महाराजगंज, सिद्घार्थ नगर, सुल्तानपुर, अम्बेडकरनगर, अमेठी की टीएचआर इकाईयों में 21 से 30 प्रतिशत उत्पादन हो रहा है। जबकि औरेया, महोबा, इटावा, प्रतापगढ़, गोरखपुर, वाराणसी सोनभद्र में 15 से 20 प्रतिशत ही उत्पादन हो रहा है।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर शुरू की गई एक अच्छी योजना अफसरों की कमाओ और खाओ नीति के कारण दम तोड़ रही है। इस योजना की शुरूआत में बातें तो महिलाओं और बच्चों के वेलफेयर की गई और कार्ययोजना में सुनहरे ख्वाब दिखाए गए। लेकिन शुरूआत से ही छल किया गया। आप सोचिये कि गांव-गिरावं की महिलाओं को इस योजना के लिए किया गया एमओयू अंग्रेजी में है। टीएचआर इकाईयां स्थापित करने के लिए 3 वेंडर कम्पनियां तुलसी एग्री इंजी मीच प्राईवेट लिमिटेड, फ्लोटेक इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड, पायलेटस्मिथ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ सप्लाई और सर्विस एग्रीमेंट हुआ था।
सड़े-गले, घुन लगे अन्न से तैयार हो रहा है सीएम के जिले में अनुपूरक पुष्टाहार
टीएचआर इकाईयों को लेकर कुछ दिनों पूर्व मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह, कृषि उत्पादन मोनिका एस. गर्ग और प्रमुख सचिव लीना जौहरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में तमाम खामियां सामने आईं। इन टीएचआर उत्पादन इकाईयों की बदहाली की पोल जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा नामित किए गए उपनिदेशक के औचक निरीक्षण की रिपोर्ट से खुलती है। औरेया हमीरपुर, देवरिया, गोरखपुर, आगरा, चंदौली की इकाईयों में सड़े, गले, घुने और कीड़े लगे गेहूं, चना, दाल, मूंगफली का प्रयोग किया जा रहा है। साथ ही निर्धारित वजन से कम वजन का पैकेट्स तैयार किए जा रहे हैं। इससे आज अंदाजा लगा सकते हैं कि मुख्यमंत्री के जिले गोरखपुर तक सड़े-गले अन्न से पुष्टाहार तैयार किया जा रहा है। शासन के दिनांक 9 मार्च 2021 का पत्रांक संख्या 589/58-1-21-2/1(116)/17 टीसी-सी से पता चलता है कि नैफेड के जरिए 70 फीसदी फोर्टिफाइड गेहूं, दलिया, चना, दाल एवं फोर्टिफाइड खाद्य तेल आपूर्ति की जा रही है। इससे साफ होता है कि टीएचआर इकाईयों के सफल न होने से जो काकस आईसीडीएस में पुष्टाहार आपूर्ति करता था। वह अब भी नैफेड के जरिए अपना काम कर रहा है।
टीएचआर इकाईयों की समस्याएं
कई टीएचआर इकाईयों के प्रतिनिधियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पहले सरकार ने इस मॉडल को वेलफेयर के तौर पर प्रचारित और प्रसारित किया लेकिन अब यह बिजनेस मॉडल के तौर पर स्थापित करने की कवायद चल रही है। अधिकतर इकाईयों में कार्यरत महिलाएं अल्प शिक्षित हैं। एमओयू अंग्रेजी में किया गया है। जिसकी वजह से टीएचआर में शामिल 4000 महिलाओं को अंग्रेजी का एमओयू पढऩे में दिक्कतें होती है। जिसका लाभ एमओयू वाली कम्पनियों तुलसी एग्रो इंजी मीच प्राइवेट लि., फ्लोरटेक इंजीनियर्स प्राइवेट लि. और पायलेटस्मिथ इंडिया प्राइवेट लि.को मिल रहा है। विभागीय जानकार कहते हैं कि अधिकतर कम्पनियों के प्रतिनिधियों ने शासन के अफसरों से सांठगांठ कर एमओयू के टर्म एंड कंडीशन अपने मुताबिक बनवा लिए। कई स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बिजली की कमी रहती है। रात के शिफ्ट में काम करने में दिक्कत होती है। हममें उद्यमशीलता का अभाव है। यानी बाजार के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। टीएचआर मशीन स्थापित करने वाली वेण्डर कम्पनियां मशीन को ठीक करने में हप्ते भर से ज्यादा का समय लगाती है। इन कम्पनियों के सर्विस सेंटर यूपी में नहीं है। किसी भी समस्या का निदान होने में महीनों लग जाते हैं। बहुत से टीएचआर इकाईयां किराये के घर में लगी हुई हैं। जिसकी वजह से अनुपूरक पुष्टाहार तैयार करने में काफी लागत बढ़ जाती है। अनुपूरक पुष्टाहार तैयार करने के लिए अन्न की आपूर्ति भी समय पर नहीं हो रही है। सरकार ने तय किया है कि टीएचआर इकाईयां जितना उत्पादन करेंगी उतना पैसा मिलेगा मिलेगा। इससे स्वयं सेवा समूह से जुड़ी महिलाओं का योजना से मोहभंग हो रहा है। कई महिलाओं का कहना है कि जब पैसा नहीं मिलेगा तब काम क्यों करें। योजना को सफल करने की सारी जिम्मेदारी अब महिला स्वयं समूहों पर डाल दी गई है। जबकि अधिकतर फैसले इस योजना से जुड़े अफसर ही करते हैं।
नाकामियों से परिचित है हाईकमान
उच्च स्तर पर हुई समीक्षा बैठक में यह बात सामने आई है कि टीएचआर इकाईयों को स्थापना और संचालन की जानकारी है और न ही अनुभव है। टीएचआर इकाईयों का संचालन उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा किया जाता है। जबकि बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग (यूपीएसआरएलएम) के पास इन टीएचआर इकाईयों के क्रियान्वयन एवं संचालन की कोई भी सूचना उपलब्ध नहीं होती है। उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन और ग्राम्म विकास विभाग द्वारा इस योजना पर खर्च होने वाले व्यय को लेकर बिलों के सत्यापन बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग से कराए जाना संभव नहीं है। तीनों विभागों में आपसी तालमेल की कमी के कारण टीएचआर इकाईयां प्रभावित हो रही हैं। इस तरह की तमाम अव्यवहारिक समस्याएं हैं।
सफेद हाथी खड़ा कर रही है सरकार
ग्राम्य विकास विभाग ने मई 2023 में बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग को टीएचआर इकाईयों पर 935.27 करोड़ रुपए वार्षिक बजट का प्रस्ताव दिया था। इस पर यूपीएसआरएलएम ने 935.27 करोड़ रुपए के खर्च का परीक्षण कर वित्त वर्ष 2023-24 के लिए योजना प्रारम्भ से सितम्बर 2023 तक कुल 160.19 करोड़ रुपए आगामी छह माह यानी अक्टूबर 2023 से मार्च 2024 तक के लिए 101.94 करोड़ रुपए यानी कुल 262.13 करोड़ रुपए खर्च को उपयुक्त पाया था। जिलों में स्थापित टीएचआर इकाईयां अपनी क्षमता के मुताबिक उत्पादन नहीं कर पा रही हैं। 10 अक्टूबर 2024 को हुई समीक्षा बैठक के रिकार्ड के मुताबिक 17 जिलों में 30 फीसदी, 19 जिलों में 21-30 फीसदी और 7 जिलों में 15-20 प्रतिशत ही उत्पादन हुआ। इसी तरह 21 जिलों में 1.56 मीट्रिक टन, 16 जिलों में 1.155 मीट्रिक टन और 6 जिलों में 1.8 मीट्रिक टन का प्रतिदिन उत्पादन हुआ है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि टीएचआर योजनाएं किस तरह से लालफीताशाही के कारण दम तोड़ रही हैं। सितम्बर 2023 तक 30 जिलों के टीएचआर इकाईयों में 17.98 करोड़ रुपए का घाटा हो चुका है। टीएचआर इकाईयों को 262 करोड़ रुपए के वीजीएफ निधि में से मात्र 87 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं।
मंत्री और आईएएस अफसरों ने साधी चुप्पी
महिला कल्याण बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की मंत्री बेबीरानी मौर्य और विभाग की प्रमुख सचिव लीना जौहरी और कार्यवाहक निदेशक संदीप कौर से इस संबंध में कई बार प्रतिक्रिया के लिए सम्पर्क करने का प्रयास किया गया। लेकिन बात नहीं हो पाई। जबकि मुख्यमंत्री की महत्वकांक्षी योजना को शुरू करवाने वाले वरिष्ठï आईएएस और मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से सम्पर्क नहीं हो पाया।
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