Corruption: ठंडे बस्ते में फेंकी गई मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह के भ्रष्टाचार खिलाफ हुई शिकायतें!
कुछ पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, कुछ मुख्य सचिव गए जेल!

Corruption: लखनऊ। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह यूपी के पहले मुख्य सचिव नहीं हैं, जिन पर भ्रष्टाचार (Corruption) के आरोप लगे हैं। बीते ढाई दशक में कई मुख्य सचिवों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और कुछ को जेल जाना पड़ा। कुछ को अभी भी जांच का सामना करना पड़ रहा है। कुछ को भ्रष्टाचार के आरोपों से क्लीनचिट भी मिली। एक दौर था यूपी आईएएस एसोसियेशन दहाड़ कर अपने बीच के आईएएस अफसरों में से महाभ्रष्टï का चुनाव करती थी, आज न तो अपनी वार्षिक आम बैठक (एजीएम) करवा पा रही है और न ही अपने बीच के भ्रष्टï आईएएस अफसरों के कारनामों पर मुखर हो पा रही है।
ठंडे बस्ते में फेंकी गई सीएस मनोज कुमार सिंह के खिलाफ हुई शिकायतें

आपको बताते चलें कि आपको बताते चलें कि नई दिल्ली निवासी सुबित कुमार सिंह ने 12 नवम्बर 2024 को प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश, औद्योगिक विकास मंत्री, सेक्रेटरी डीओपीटी, सीबीआई, ईडी को मुख्य सचिव, औद्योगिक विकास आयुक्त, गोरखपुर इंडस्ट्रयिल डेपलमेंट एथारिटी, ग्रेटर नोएडा एथारिटी, नोयडा डेवलेपमेंट एथारिटी और इंडस्ट्रयिल डेपलमेंट डिर्पाटमेंट की रिविजनल बेंच के मुखिया मनोज कुमार सिंह के कारनामों की तीन पेज की शिकायत के साथ 90 पत्रों का संलग्नक भेजा है। भेजी गई शिकायत में आरोप लगाया है कि मुख्य सचिव ने मनोज कुमार सिंह ने नियमों को ताक पर रखकर कुछ ‘निजी औद्योगिक संस्थानों’ को लाभ पहुंचाया है।
अखंड प्रताप सिंह और नीरा यादव भ्रष्टाचार में गई थी जेल

यूपी के पूर्व मुख्य सचिव दिवंगत अखंड प्रताप सिंह एक हाई प्रोफाइल पूर्व नौकरशाह, कुछ आईएएस अफसरों द्वारा जिन्हें कभी उत्तर प्रदेश आईएएस एसोसिएशन द्वारा सबसे भ्रष्ट अधिकारी चुना गया था। उनकी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। 2005 में उनके खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले के अनुसार सिंह ने दिल्ली यूपी और उत्तराखंड में 200 करोड़ रुपये की 84 अचल संपत्तियां अर्जित कीं। उन पर संपत्तियों को स्थानांतरित करने और काल्पनिक बैंक खातों के माध्यम से वित्तीय लेनदेन करने के लिए अपने मृत पिता और एक दोस्त के जाली हस्ताक्षर करने का भी आरोप था। सीबीआई ने 2005 में 16 स्थानों पर छापे भी मारे थे और कथित तौर पर उनके और उनकी बेटी के नाम पर बड़ी संपत्तियां पाई थीं। उन्हें सीबीआई के अधिकारियों ने वसंत कुंज के उनके फार्म हाउस से गिरफ्तार जेल भेजा था।

पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव को फ्लैक्स जमीन घोटाले में सजा हुई थी और उसे जेल जाना पड़ा था। हाईकोर्ट से जमानत मिली तो अब नोएडा प्लाट आवंटन मामले में भी वह कानूनी कसौटी पर मुजरिम साबित हो गई है। नीरा के नाम बदनामियों के और भी कई दाग हैं। मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश की मुख्य सचिव रह चुकी नीरा देश की पहली ऐसी आईएएस अफसर रही है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में भ्रष्टाचार के आरोपों चलते चीफ सेक्रेटरी पद से हटाया था। 1997 के आईएएस एसोसिएशन के चुनाव में नीरा को सबसे भ्रष्ट आईएएस अफसर भी माना गया था।

1983 बैच के आईएएस अफसर राजीव कुमार द्वितीय प्रमुख सचिव नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग थे। कोर्ट के फैसले के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया। सपा सरकार बनने से पहले वे राजस्व परिषद में थे। अखिलेश सरकार ने आते ही उन्हें अहम पोस्टिंग देते हुए नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग का प्रमुख सचिव बना दिया था। हालांकि नोएडा प्लॉट आवंटन मामले में नीरा यादव के साथ आरोपी थे। दागी छवि वाले राजीव कुमार अहम पोस्टिंग के पीछे उनकी नीरा यादव से नजदीकी को माना जा रहा है। नीरा यादव जब नोएडा की चेयरपर्सन थीं, तब राजीव कुमार उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे।
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उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार तिवारी सहित शासन के 4 आईएएस अफसरों पर चहेती फर्मों को मैनपॉवर सप्लाई का ठेका दिलाकर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार (Corruption) करने का आरोप लगा है। यह आरोप सोशल एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने लगाया है।
राजेन्द्र कुमार तिवारी के कारनामों की हुई थी शिकायत
नूतन ठाकुर ने मुख्य सचिव आर के तिवारी और पूर्व अपर मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दूबे के खिलाफ शिकायत भेजी थी। यह इनके द्वारा कथित रूप से मुन्ना तिवारी मेसर्स हर्ष इंटरप्राइजेज को मेडिकल कॉलेज मैनपावर सप्लाई में कथित अनियमितता के संबंध में था। इसमें हर्ष इंटरप्राइजेज के मालिक मुन्ना तिवारी के आर के तिवारी के करीबी रिश्तेदार होने और इस कारण बदायूं मेडिकल कॉलेज में बिना सरकारी अग्रीमेंट के मैनपावर का काम करने व इसके एवज में बदायूं मेडिकल कॉलेज द्वारा उनके फर्म को करोड़ों रुपए का भुगतान किए जाने के आरोप हैं।
गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की जांच में पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन और दीपक सिंघल पर आई आंच

योगी सरकार ने वर्ष 2017 में गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की सीबीआई से जांच की कराने की घोषणा की थी। सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने प्रदेश सरकार से तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव सिंचाई व बाद में सीएस रहे दीपक सिंघल के खिलाफ जांच की मंजूरी मांगी थी। घोटाले में गिरफ्तार इंजिनियरों के बयान और दस्तावेज के आधार सपा सरकार के कार्यकाल के दोनों पावरफुल आईएएस अफसरों की जांच का नंबर आया है। दोनों पूर्व सीएस रिवर फ्रंट के निर्माण को लेकर गठित उच्चस्तरीय अनुश्रवण समिति (टास्क फोर्स) का सबसे अहम हिस्सा थे।

पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन और पूर्व दीपक सिंघल के जांच के घेरे में आने की वजह योजना में हुईं गड़बडिय़ों की अनदेखी को बताया जा रहा है। रिवर फ्रंट को मंजूरी मिलने के बाद 25 मार्च 2015 को आलोक रंजन की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इसमें तत्कालीन प्रमुख सचिव (सिंचाई) दीपक सिंघल, सिंचाई विभाग के तत्कालीन प्रमुख अभियंता, विभागाध्यक्ष और मुख्य अभियंता भी शामिल थे।
यूपी आईएएस एसोसियेशन की हालत है पतली
कुछ रिटायर्ड और वर्किंग आईएएस और आईपीएस अफसरों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस समय नौकरशाह कार्रवाई के नाम पर काफी डरे हुए हैं। इसकी अहम वजह यह है कि अधिकतर आईएएस पीसीएस और आईपीएस प्राइम पोस्टिंग के लिए हर तरह के समझौते कर रहे हैं। इस वजह से आईएएस एसोसियेशन भी चुप है। आईएएस और पीसीएस एसोसियेशन की हालत इतनी पतली हो गई है कि बीते छह साल से अपनी वार्षिक आम बैठक तक नहीं करवा पा रही है। पहले उत्तर प्रदेश आईएएस एसोसियेशन काफी प्रभावशाली और ईमानदार थी। जिसकी वजह से राजनीतिक पार्टिंयां भी दबाव नहीं बना पाती हैं। बीते ढाई दशक में नौकरशाहों ने सरकारों की मर्जी के आगे घुटने टेक दिए हैं।
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