बहुजनों को अखर रही है ‘बहनजी’ की चुप्पी!
अदूरदर्शी नीतियों से सत्ता से दूर होती बसपा
BSP: लखनऊ। आयरन लेडी के नाम से विख्यात बसपा सुप्रीमो मायावती यानी बहनजी की कभी देश में तूती बोलती थी। लेकिन बहुजनों को बहनजी की चुप्पी अखर रही है। इसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में दिखने को मिल सकता है। इसके साथ ही बसपा की अदूरदर्शी नीतियों के चलते 2007 से लेकर 2022 तक हुए विधान सभा और लोकसभा के चुनाव में बुरी तरह से मात खाने और बसपा रसाताल में चले जाने के बावजूद बसपा नेतृत्व सबक लेने को तैयार नहीं है। अब हालात यह है कि बसपा को 2024 के लिए लोकसभा चुनाव उ मीदवार के उ मीदवारों के लाले पड़े हुए हैं। राजनीतिक विश्लेषक बहनजी की चुप्पी को बसपा के लिए आत्मघाती बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि यूपी में बसपा चार सरकार बना चुकी है। तीन बार गठबंधन से एक बार पूर्ण बहुमत की सरकार अपने बल पर। 2019 के हुए लोकसभा चुनाव में धुर-विरोधी पार्टियां सपा-बसपा का गठबंधन हुआ था।
उस समय बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव व सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस गठबंधन की देश में चर्चा थी। राजनीतिक पंडितों ने अनुमान लगाया था कि सपा-बसपा गठबंधन को यूपी में लगभग 50-60 सीटें जीत जाएंगी और भाजपा बुरी तरह से प्रभावित होगी। जब परिणाम आए तो सपा 5 पर और बसपा 10 सीटें जीती। भाजपा 65 जीतीं थी। परिणाम के बाद कुछ ही दिनों के अंदर बसपा सुप्रीमो मायावती ने यादव समाज द्वारा वोट न दिए जाने का सपा पर आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ दिया था। 2022 में हुए विधान सभा के चुनाव में बसपा की सबसे बुरी स्थिति हुई मात्र एक सीट ही निकाल पाई। दलितों की मानी जाने वाली पार्टी जब से सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की पॉलिसी ग्रहण की है तब से दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों का तेजी से बसपा से मोहभंग हुआ है। जिसके परिणाम यह हुआ दलितों का 22.5 फीसदी वोट बैंक में से 10. 88 फीसदी मिला है।
बसपा पार्टी के कई कोआर्डिनेटरों का कहना है कि अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा से बसपा के पर परागत वोट बैंक और पदाधिकारियों में उत्साह की भारी कमी है। बहनजी से कार्यकर्ताओं का संवाद भी नहीं है। इसकी वजह से बसपा का पर परागत वोट बैंक दुविधा में है। वैसे बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ ही देश भर की 85 सीटों को जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। जिसको लेकर कार्यकर्ता जमीन पर काम रहे हैं।
विख्यात लेखक और दलित चिंतक एच. एल. दुसाद ने कहा कि मैं भी बहनजी की बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की नीतियों से प्रभावित था। इसी वजह से मैंने बहनजी को लेकर एक किताब जिंदा देवी लिखी थी। लेकिन 2007 की पूर्ण बहुमत की सरकार में बहनजी ने अपनी नीति सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय कर दिया था। इसके बाद से बसपा का जनाधार तेजी से गिर रहा है। 2007 से लेकर 2022 तक के चुनावों में मिली करारी हार के बावजूद बसपा ने अपनी नीतियों में बदलाव नहीं किया। बसपा की हार में एक सबसे बड़ी खामी यह है कि जोड़ने के बजाए बहनजी ने तोड़ने में ज्यादा विश्वास किया है। अधिकतर बहुजन समाज के नेता बसपा से जा चुके हैं और दूसरी पार्टियों में महत्वपूर्ण पदों पर हैं। ऐसी सूरत में बसपा को आगामी लोकसभा के चुनाव में रिजल्ट जीरो आने की उ मीद है।
चर्चित प्रोफेसर और दलित चिंतक रविकांत कहते हैं कि सत्ता हासिल करने के लिए मान्यवर कांशीराम जी ने राजनीतिक पार्टी बसपा का गठन किया था। बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी के संघर्ष और त्याग की वजह से 2007 में यूपी में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। उस समय इस पार्टी की खूबी यह कोई भी गरीब-गुरबा और समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति जिला पंचायत से लेकर मंत्री, विधायक, सांसद बन सकता था। बहनजी के हाथ में जब से बसपा की कमान आई तब से बसपा अपने एजेंडे से भटक चुकी है। बसपा की इस हालत से आभास होता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में परिणाम 2019 वाला हो सकता है।
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