राम मंदिर के निर्माण में हुआ “बिल्डिंग बाई-लॉज़” की अनदेखी!
पूर्व राज्यसभा सांसद प्रमोद कुरील ने उठाये सवाल, मांगी RTI
RTI: लखनऊ। राज्यसभा के पूर्व सांसद प्रमोद कुरील ने अयोध्या में बने दिव्य और भव्य राम मंदिर को लेकर सवाल खड़े किये है कि “बिल्डिंग बाई-लॉंस” (Building Bye-Laws) का उल्लंघन हुआ है. इसको लेकर उन्होंने अयोध्या विकास प्राधिकरण में एक जनसूचना नियम के तहत आवेदन किया है।
पूर्व सांसद के अनुसार हिन्दू धर्म के एक सम्मानित शंकराचार्य के अनुसार अयोध्या में बनाया गया (अधूरा) राम मंदिर एक “दिव्यांग मंदिर” है जिसमें गत 22 जनवरी को की गयी ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ हिन्दू धर्म की धार्मिक मान्यताओं एवं हिन्दू शास्त्रों के अनुसार “धर्म-विरुद्ध” है। धर्म के साथ साथ, बल्कि धर्म से आगे बढ़ कर इस पूरे मामले का एक कानूनी/संवैधानिक पहलू भी है जिस को समझना बहुत ज़रूरी है।
हमारे देश के कानून के हिसाब से देश में बनने वाली हर छोटी बड़ी इमारत आदि (विशेषकर शहरों व कस्बों में) के निर्माण के दौरान व पश्चात कुछ विशेष नियमों का पालन करना पड़ता है जो सभी तरह के निर्माणों पर लागू होता है। इन्हें “बिल्डिंग बाई-लॉंस” (Building Bye-Laws) कहा जाता है। जिसके तहत देश भर में तमाम छोटे-बड़े निर्माण कार्य को “नियंत्रित/अधि-नियमित” (Control & Regulate) किया जाता है। इन नियमों के अनुसार किसी भी इमारत या नियोजित परिसर (Planned Complex) के निर्माण कार्य को आरंभ करने से पहले उसका नियमानुसार बनाया गया नक्शा पास कराना ज़रूरी होता है। उसके बाद ही उस भवन या परिसर (Complex) के निर्माण कार्य को शुरू करने की अनुमति प्रदान की जाती है।
उनके मुताबिक तत्पश्चात निर्माण कार्य पूरा होने के बाद निर्माता/मालिक द्वारा स्थानीय विकास प्राधिकरण को निर्माण कार्य के कार्य के पूरा होने की लिखित सूचना दी जाती है। सूचना प्राप्त होने के बाद विकास प्राधिकरण तथा अन्य स्थानीय एजेंसियाँ (नगर निगम आदि) मौके पर जा कर ये पुष्टि करती हैं कि ‘क्या उस निर्माण कार्य में निर्मित भवन आदि विकास प्राधिकरण द्वारा पहले से पास किया गए नक्शे के अनुसार बना है अथवा नहीं?’ तथा साथ ही साथ, अन्य सुविधाएं तथा आवश्यक सेवाओं जैसे जल विभाग (Water Supply), अग्नि-शमन विभाग (Fire Department), बिजली विभाग (Electricity Department) आदि से अनापत्ति प्रमाणपत्र (जिसे आम भाषा में NOC कहा जाता है) सभी तरह की जांच पूरी करके जारी किया जाता है।अगर किसी भी मामले में कोई कमी या त्रुटि हो तो अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) जारी नहीं किया जा सकता है।
इन सबके बाद ही नियमानुसार संबन्धित प्राधिकरण द्वारा उस इमारत या निर्माण परिसर को विकास प्राधिकरण द्वारा “समापन प्रमाणपत्र” अर्थात “कम्प्लीशन सर्टिफिकेट” जारी किया जा सकता है। इस चरण के बाद ही किसी भी इमारत या परिसर का व्यक्तिगत या सार्वजनिक उपयोग किया जा सकता है। ये नियम हर तरह के निर्माण कार्यों पर लागू होते हैं। अयोध्या में जिस “राम मंदिर” का ‘प्राण-प्रतिष्ठान’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 22 जनवरी को किया गया है उसकी “धार्मिक मान्यताओं” के अनुसार तो स्थिति हिन्दू धर्मगुरु शंकराचार्य तो स्पष्ट कर ही चुके हैं।
पूर्व सांसद ने मंदिर निर्माण को लेकर उठाए सवाल…..
अब प्रश्न ये है कि क्या देश के कानून तथा अन्य निर्माण संबंधी नियमों का अनुपालन इस निर्माण कार्य में किया गया है या नहीं?
जैसे….
क्या इस “राम मंदिर परिसर” को स्थानीय प्रशासन/नगर निगम द्वारा अग्नि-शमन, जल विभाग तथा अन्य संबंधी विभागों द्वारा “अनापत्ति प्रमाण पत्र” (एन॰ओ॰सी॰) आदि प्रदान किए जा चुके हैं?
मुख्य भवन का जितना निर्माण कार्य पूरा हुआ है तथा जितना शेष बाकी है क्या (नियमानुसार) उसको “कम्प्लीशन सर्टिफिकेट” दिया जा सकता है?…..अथवा दिया गया है?
अगर नहीं, तो क्या बिना “कम्प्लीशन सर्टिफिकेट” तथा विभिन्न विभागों द्वारा जारी किए जाने वाले “एनओसी” के बिना इस परिसर के सार्वजनिक उपयोग को (हजारों की संख्या में प्रतिदिन दर्शनार्थियों का जमघट) क्या कानूनी दृष्टि से आपराधिक मामला नहीं है? क्या इसकी ज़िम्मेदारी मुख्य तौर पर राम मंदिर ट्रस्ट के व्यवस्थापक श्री चंपत राय तथा इस पूरे मामले की अनदेखी करने वाले शीर्ष अधिकारियों की नहीं बनती है?
(वरना, अगर ये किसी गरीब/साधारण आदमी का 25-50 गज का मकान होता तो अभी तक इसे प्रशासन द्वारा “सील” कर दिया गया होता, इसके मालिक पर भारी जुर्माना लगा दिया गया होता…या शायद बुलडोजर लगा कर ढहा ही दिया गया होता।)
अंत में सवाल यही है कि (अगर ये उपरोक्त ज़रूरी कानूनी प्रक्रियाएँ पूरी नहीं की गयी हैं, जैसा कि प्रथम दृष्टया नज़र भी आता है) किसी भी अधूरे, धार्मिक दृष्टि से ”वर्जित” एवं कानूनी तौर से “अनधिकृत” निर्माण में जबरन ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ क्या एक नैतिक व कानूनी अपराध नहीं है?
वैसे, इस विषय में पूरी व अधिकृत जानकारी के लिए मैंने “अयोध्या विकास प्राधिकरण” (ADA) में एक आर॰टी॰आई॰ (RTI) याचिका आज ही दाखिल की है।
इस देश की सत्ता की “छद्म नैतिकता” (या कहें दोगलेपन?) का ये एक सख्त इम्तेहान होगा। क्या सत्ता संविधान के अधीन है अथवा संविधान सत्ता के अधीन…??
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