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UP Bureaucracy: मुख्य सचिव के काम नहीं, कारनामें बोल रहे हैं…

आईएएस मनोज कुमार सिंह के फैसले और सम्पत्ति की जांच की मांग

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  • अचानक सीएस ने रद्द किए आईएसओआर

लखनऊ। दम-खम के साथ सेवा विस्तार के लिए लगे हुए मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह के काम नहीं कारनामें बोल रहे हैं। यूपी की विभिन्न निर्माण एजेंसियों के लिए वित्त विभाग और नियोजन विभाग की सहमति से 1 नवम्बर 2०24 को जारी एक एकीकृत दर अनुसूची (आईएसओआर) को बगैर कोई जांच और तकनीकी परामर्श के मुख्य सचिव ने निरस्त कर दिया। मुख्य सचिव का यह फैसला जहां सत्ता के गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है वहीं इस मामले में मुख्य सचिव पर अनियमितता का आरोप लगाते हुए पीएमओ और अन्य केन्द्रीय एजेंसियों से शिकायत की गई है।

 

 

शिकायत में तमाम साक्ष्यों के साथ उल्लेख किया गया है कि नियोजन विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने विभिन्न निर्माण एजेंसियों कÞ साथ परामर्श प्रक्रिया और वित्त विभाग की सहमति से 1 नवम्बर 2०24 को एक एकीकृत दर अनुसूची (आईएसओआर) अधिसूचित की थी। इस आईएसओआर का उद्देश्य विभिन्न विभागों लोक निर्माण विभाग, सिंचाई, जल निगम द्बारा एक ही निर्माण मदों कÞ लिए अलग-अलग होनेे कÞ कारण लागत में आने वाली विसंगतियों को दूर करना था। पूर्व मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा कÞ निर्देश पर लोक निर्माण विभाग कÞ प्रमुख अभियंता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। व्यापक विचार-विमर्श और तकनीकी मूल्यांकन कÞ बाद समिति ने 31 अगस्त 2०24 को नियोजन विभाग को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं और आईएसओआर को प्रमुख सचिव नियोजन द्बारा आधिकारिक रूप से प्रसारित किया गया। आईएसओआर से यूपी में सामग्री, श्रम और मशीनरी उपयोग कÞ लिए दरों को युक्तिसंगत और मानकीकृत किया। इसमें विशेष रूप से सीमेंट, स्टील और उपकरणों कÞ उपयोग की दरों में लंबे समय से चली आ रही अनियमितताओं को दूर किया। साथ ही पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हुई।

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आईएसओआर को बदनाम करने कÞ लिए एक सुनियोजित अभियान चलाया गया। 23 फरवरी 2०25 को एक हिन्दी दैनिक अखबार में एक खबर प्रकाशित की गई थी। जिसमें आईएसओआर कÞ तहत बिटुमेन की बढ़ी हुई कीमतों का आरोप लगाया गया। यह रेखांकित करना महत्वपूर्ण है कि लेख में उल्लेखित बिटुमेन की दरें, लेख कÞ प्रकाशन से पहले ही 19 फरवरी 2०25 को लोक निर्माण विभाग द्बारा वापस ले ली गई थीं। इसकÞ बावजूद मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने खबर का हवाला देते हुए 23 फरवरी 2०25 को एक बैठक बुलाई और 48 घंटे कÞ भीतर बिना किसी उचित तकनीकी या वित्तीय जाँच कÞ आईएसओआर को रद्द करने का आदेश दे दिया।
परियोजना लागत बढ़ाने का खेल आईएसओआर रद्दीकरण कÞ बाद मनोज कुमार सिंह की अध्यक्षता में यूपीईआईडीए ने 24 अप्रैल 2०25 को एक नया आदेश जारी किया, जिसमें आईएसओआर वापसी का हवाला देते हुए और गंगा एक्सप्रेसवे कÞ विस्तार फर्रुखाबाद लिंक एक्सप्रेसवे की लागत में संशोधन किया गया।

परियोजना की लागत 7,142 करोड़ रुपये से बढ़कर 7,632 करोड़ रुपये हो गई। इस बढ़ी हुई लागत में जानबूझकर स्टील और सीमेंट की बाजार दरों में भारी कमी को नजरअंदाज किया गया।। पूवार्ंचल एक्सप्रेसवे और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे परियोजनाओं से भी इसी तरह कÞ आरोप सामने आए हैं। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने निजी लाभ कÞ लिए सार्वजनिक पद कÞ दुरुपयोग पर प्रश्न उठते हैं। भेजी गई शिकायत में मांग की गई है कि आईएसओआर को रद्द करने और उसकÞ बाद एक्सप्रेसवे परियोजनाओं की लागत में वृद्धि की एक स्वतंत्र और समयबद्ध जाँच का आदेश दिया जाए।

यूपीईआईडीए कÞ अधिकारियों और अन्य संबद्ध अधिकारियों की भूमिका की जाँच षडयंत्र, मिलीभगत और राज्य कÞ खजाने को जानबूझकर नुकसान पहुँचाने कÞ लिए की जाए। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की व्यक्तिगत संपत्ति की जाँच की जाए। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से कई बार प्रतिक्रिया लेने के लिए सम्पर्क किया गया। लेकिन कोई जवाब नहीं दिया।

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