UP Government: लोकायुक्त संगठन पर भाजपा ‘चाणक्य’ अमित शाह का वादा भूल गई यूपी सरकार !

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- वादा लोकायुक्त संगठन में सुधार का था, पर कार्यकाल पूरा होने पर भी लोकायुक्त नहीं बदला
- सुप्रीम कोर्ट के लैंडमार्क जजमेन्ट पर 2016 में लोकायुक्त बने थे न्यायमूर्ति संजय मिश्र
- लोकायुक्त अधिनियम के मुताबिक कार्यकाल आठ साल और फिर नई नियुक्ति तक जारी
परवेज अहमद
लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी का ‘लोक कल्याण संकल्प पत्र-2017’ जारी करते समय भाजपा के चाणक्य और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनने पर लोकायुक्त संगठन में सुधार, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का जनता से वादा किया था। पूरे पांच साल की सरकार गुजर गई। 2022 में भाजपा सत्ता में लौटी और उसके भी तीन साल गुजर रहे, मगर प्रदेश सरकार ने इस वादे को पूरा करने की सुधि ही नहीं ली और लोकायुक्त संगठन बद से बदत्तर होता चला गया। 2017 से पहले एक लोकायुक्त और एक उपलोकायुक्त होता था, यूपी सरकार ने दो और उपलोकायुक्त तो नियुक्त कर दिये लेकिन इस संगठन के कामकाज की निगरानी की ओर नजर फेर लीं। नतीजे में कई ऐसे में मामलों में नोटिस जारी कर दे रहा, जो जांच उसकी परिधि में नहीं आती। हाल के दिनों में ऐसे लोगों को नोटिस किया गया, जो निजी क्षेत्र के हैं। राज्य सरकार उन्हें वेतन-भत्ते नहीं, एक निर्धारित राशि मानदेय देती है।
यूपी पूर्व लोकायुक्त स्वर्गीय एनके मेहरोत्रा ने देश में पहले बार आफिस आफ प्राफिट के मामले में बसपा और भाजपा के दो विधायकों के खिलाफ फैसला सुनाया था। उनकी जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि दोनों विधायक ठेकेदारी भी कर रहे हैं और विधायक के रूप में वेतन और भत्ते भी ले रहे हैं। दोहरी आय के चलते यह आफिस आफ प्राफिट का उल्लंघन करने के आरोपी हैं। इस निर्णय के खिलाफ विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई थी लेकिन उन्हें लाभ नहीं मिला था। कई और पेचीदगी भरी संस्तुतियां न्यायमूर्ति ( स्वः) एनके मेहरोत्रा ने की थीं, जिसके बाद भाजपा के शीर्ष नेताओं ने चुनावी अभियान के दौरान लोकायुक्त की सेवा अवधि को कम करने और उत्तर प्रदेश लोकायुक्त तथा उपलोकायुक्त अधिनियम-1975 में सुधार करने, लोकायुक्त की सेवा अवधि घटाने, कार्यप्रणाली को और पारदर्शी बनाने का जनता से वादा किया था। लोक कल्याण संकल्प पत्र-2017 जारी करते समय यूपी भाजपा के तत्कालीन प्रभारी अमित शाह, भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य ने भी सरकार बनने पर लोकायुक्त संगठन में सुधार और उसे बहुसदस्यीय बनाने का वादा किया था। नियुक्तियों में पारदर्शिता का ऐलान भी किया गया था।
यूपी में भाजपा की सरकार चलते आठ साल होने को हैं, मगर भाजपा को लोकायुक्त संगठन, व्यवस्था में सुधार तो दूर की बात है, वह यह भी भूल गई कि लोकायुक्त का कार्यकाल पूरा हो चुका हैं और वह नई नियुक्ति न होने तक सेवा में बने रहने के नियमों का लाभ ले रहे हैं। दरअसल, भाजपा सरकार के सत्ता संभालने के बाद से लोकायुक्त संजय मिश्र ने इस संगठन को गोपनीयता के आवारण में ढक दिया है।
लोकायुक्त अधिनियम का तब न्यायमूर्ति मेहरोत्रा ने पारदर्शिता के लिए प्रयोग किया और अब न्यायमूर्ति संजय मिश्र गोपनीयता के लिए कर रहे
उत्तर प्रदेश लोकायुक्त अधिनियम 1975 अन्वेषण प्रक्रिया के बिन्दु संख्या- 2 में लिखा है-ऐसा प्रत्येक अन्वेषण असार्वजनिक होगा, और विशेषतः परिवादी तथा अन्वेषण से प्रभावित लोकसेवक का परिचय अन्वेषण के पूर्व, दौरान या पश्चात जनता या प्रेस के समक्ष प्रकट नहीं किया जायेगा, परन्तु प्रतिबन्ध यह है कि लोक आयुक्त या उपलोक आयुक्त किसी निश्चत लोक महत्व के मामले से संबंधित कोई भी अन्वेषण सार्वजनिक सकेगा यदि वह, लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से, ऐसा करना उचित समझे।
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