Government Schools: लखनऊ: सरकारी स्कूलों में नामांकन घटा! क्या वजह है RTE और NEP में टकराव?
आयु सीमा में अंतर पैदा कर रहा है असमानता
NEP: लखनऊ में शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक बड़ी चुनौती सामने आई है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के नियमों में विरोधाभास के कारण सरकारी स्कूलों में छात्रों का नामांकन घट रहा है।
कैसे हो रहा है ये नुकसान?
- आयु सीमा का अंतर: NEP के तहत प्री-प्राइमरी स्कूल में दाखिला 3 साल की उम्र से मिल सकता है, जबकि RTE 6 साल से बच्चों को स्कूल जाने का अधिकार देता है। इसका फायदा निजी स्कूल उठा रहे हैं, जहां 3.5 साल में ही बच्चों को दाखिला दिया जा रहा है।
- प्री-प्राइमरी शिक्षा की असमानता: सरकारी स्कूलों में प्री-प्राइमरी कक्षाएं कम हैं, जबकि ज्यादातर निजी स्कूलों में ये मौजूद हैं। सरकारी विकल्प के तौर पर मौजूद आंगनबाड़ी केंद्र भी हर जगह नहीं हैं।
इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है?
इन कारणों से अभिभावक बच्चों को प्री-प्राइमरी शिक्षा के लिए निजी स्कूलों में भेजना ज्यादा बेहतर समझ रहे हैं। नतीजा, सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या कम हो रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूपी में इस साल ही सरकारी प्राथमिक स्कूलों में 25 लाख छात्र कम हो गए हैं।
क्या है समाधान?
- एक समान प्रवेश प्रक्रिया: शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए RTE में बदलाव करके सभी बच्चों को पहली कक्षा में दाखिले का अधिकार दिया जा सकता है।
- सरकारी स्कूलों में प्री-प्राइमरी कक्षाएं: सरकारी स्कूलों में भी नर्सरी और केजी जैसी कक्षाएं शुरू की जा सकती हैं ताकि बच्चों को समान अवसर मिल सकें।
- आंगनबाड़ी केंद्रों को मजबूत बनाना: हर क्षेत्र में आंगनबाड़ी केंद्र खोले जाएं और उन्हें बेहतर बनाया जाए।
- NEP और RTE में तालमेल: दोनों शिक्षा नीतियों में एकरूपता लाकर इस विरोधाभास को दूर किया जा सकता है।
अंतिम नतीजा
शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए जरूरी है कि सरकारी और निजी स्कूलों में दाखिले की प्रक्रिया एक समान हो और सभी बच्चों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचे। इसको ध्यान में रखते हुए शिक्षा नीतियों में बदलाव किए जाने चाहिए।
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