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Yogi government: न्यायिक कसौटी पर योगी सरकार, 2017 से अब तक कई मामलों में मिली फटकार!

Yogi government: योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार को 2017 से 2025 तक विभिन्न मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, और अन्य संस्थानों द्वारा फटकार लगाई गई। नीचे कुछ प्रमुख मामले दिए गए हैं, जो उपलब्ध जानकारी और वेब स्रोतों के आधार पर हैं। ये मामले मुख्य रूप से कानून-व्यवस्था, बुलडोजर कार्रवाई, पुलिसिंग, और प्रशासनिक नीतियों से संबंधित हैं।
बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार (2024-2025)
मामला**: योगी सरकार की “बुलडोजर कार्रवाई” नीति, जिसमें कथित अपराधियों की संपत्तियों को ध्वस्त किया गया, सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर रही। सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल 2025 को प्रयागराज में हुई तोड़फोड़ की कार्रवाई को “अमानवीय” और “गैरकानूनी” बताया। कोर्ट ने इसे कानून के शासन के खिलाफ माना और पूरे देश में बुलडोजर कार्रवाइयों पर दिशा-निर्देश जारी किए।
विवरण: सितंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाइयों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी कार्रवाइयों के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। नवंबर 2024 में, कोर्ट ने देश भर में बुलडोजर कार्रवाइयों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए, जिसमें बिना नोटिस या कानूनी प्रक्रिया के तोड़फोड़ को गलत ठहराया गया।
  • वजह: बिना उचित प्रक्रिया के संपत्ति ध्वस्त करना और कानून के शासन की अनदेखी।
  • विपक्ष की प्रतिक्रिया: अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेताओं ने इस फटकार को आधार बनाकर सरकार की नीतियों को “तानाशाही” करार दिया।
पुलिसिंग और कानून-व्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी (2025)  
मामला: सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि “उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह ध्वस्त हो गया है।” यह टिप्पणी दीवानी मामलों को आपराधिक केस में बदलने के मुद्दे पर आई।
विवरण: कोर्ट ने कहा कि दीवानी मामलों में लंबा समय लगने के कारण उन्हें आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है, जो गलत है। कोर्ट ने डीजीपी और थाना प्रभारियों को हलफनामा दायर करने का आदेश दिया।
  • वजह: दीवानी और आपराधिक मामलों के बीच भेदभाव की कमी और पुलिस की मनमानी।
  • विपक्ष की प्रतिक्रिया: समाजवादी पार्टी ने इस टिप्पणी को सरकार की नाकामी के सबूत के रूप में पेश किया।
अतीक अहमद हत्याकांड (2023) 
मामला: अप्रैल 2023 में माफिया अतीक अहमद और उनके भाई की पुलिस कस्टडी में हत्या ने योगी सरकार की कानून-व्यवस्था की नीति पर सवाल उठाए। यह घटना तब हुई जब दोनों को मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया जा रहा था।
 विवरण: सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार संगठनों ने इस मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए। विपक्ष ने इसे “नकली मुठभेड़” और पुलिस की विफलता का प्रतीक बताया।
  •  वजह: पुलिस कस्टडी में हत्या और सुरक्षा व्यवस्था में चूक।  
  •  परिणाम: इस मामले ने सरकार की “जीरो टॉलरेंस” नीति पर सवाल खड़े किए, और कई लोगों ने इसे प्रशासनिक नाकामी माना।
उन्नाव रेप केस और संबंधित घटनाएँ (2017-2019)
 मामला: उन्नाव रेप केस में बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की संलिप्तता और पीड़िता के पिता की पुलिस कस्टडी में मौत (2018) ने योगी सरकार को कठघरे में खड़ा किया। 2019 में पीड़िता की गाड़ी को ट्रक से कुचलने की घटना ने भी सरकार की विफलता को उजागर किया।
 विवरण: इन घटनाओं में पुलिस और प्रशासन की लापरवाही पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दिल्ली स्थानांतरित किया और त्वरित सुनवाई का आदेश दिया।
  • वजह: पीड़िता को सुरक्षा प्रदान करने में विफलता और प्रभावशाली लोगों को संरक्षण देने का आरोप।
  • परिणाम: कुलदीप सिंह सेंगर को सजा हुई, लेकिन सरकार की छवि को नुकसान पहुँचा।
एंटी-रोमियो स्क्वॉड पर आलोचना (2017-2018)
मामला: 2017 में शुरू किए गए एंटी-रोमियो स्क्वॉड, जिसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना था, को गलत तरीके से लागू करने के लिए आलोचना मिली।
विवरण: कई मामलों में, इस अभियान के तहत निर्दोष लोगों को परेशान किया गया, और कुछ पुलिसकर्मियों पर छेड़छाड़ के आरोप लगे। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और इसे “विवादित” करार दिया। वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा ने बीबीसी को बताया कि इस अभियान को “बदनामियों और ज़्यादतियों” के कारण निष्क्रिय करना पड़ा।
  • वजह: अभियान का गलत कार्यान्वयन और सिस्टम की कमी।
  • परिणाम: यह अभियान धीरे-धीरे बंद हो गया, और सरकार ने इसे दोबारा शुरू करने की बात कही, लेकिन कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।
अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई (2017)
मामला: 2017 में सरकार ने अवैध बूचड़खानों और मांस की दुकानों को बंद करने का अभियान शुरू किया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के दिशा-निर्देशों का पालन करने की बात कही गई।
विवरण: कुछ दुकानों को तकनीकी कारणों से बंद किया गया, जिनके लाइसेंस नवीनीकरण की प्रक्रिया में थे। कोर्ट ने सरकार से लाइसेंस नवीनीकरण की प्रक्रिया को जल्द पूरा करने को कहा, लेकिन इसमें देरी हुई।
वजह: बिना उचित प्रक्रिया के कार्रवाई और मीट कारोबारियों की हड़ताल।
परिणाम: कुछ दुकानें छिपे तौर पर चलती रहीं, और सरकार की नीति पर सवाल उठे।
किसान कर्ज माफी की योजना (2017)
मामला: सरकार ने 2017 में 86 लाख लघु और सीमांत किसानों के लिए 36,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी की घोषणा की।
विवरण: बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार से सहायता न मिलने के कारण इस योजना को लागू करने में चुनौतियाँ आईं। कुछ किसानों ने शिकायत की कि उन्हें लाभ नहीं मिला। कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार से जवाब माँगा।
  • वजह: योजना के लिए धन की व्यवस्था और कार्यान्वयन में कमी।
  • परिणाम: विपक्ष ने इसे “चुनावी जुमला” करार दिया, और सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा।
पुलिस भर्ती और पेपर लीक (2023-2024)
मामला: पुलिस भर्ती प्रक्रिया में पेपर लीक और अनियमितताओं के आरोपों के कारण कुछ परीक्षाएँ रद्द की गईं।
विवरण: कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी पर सवाल उठाए और सरकार से जवाब माँगा। विपक्ष ने इसे प्रशासनिक विफलता का उदाहरण बताया।
  •  वजह: भर्ती प्रक्रिया में खामियाँ और लापरवाही।
  •  परिणाम: सरकार ने नई तारीखों की घोषणा की, लेकिन इसने उसकी छवि को प्रभावित किया।
नोट्स
स्रोतों की सीमा: उपरोक्त जानकारी वेब स्रोतों और X पोस्ट्स पर आधारित है। कुछ मामलों में, फटकार की तीव्रता और संदर्भ को विपक्ष ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जबकि सरकार ने इन्हें नीतिगत समायोजन या कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा बताया।
विपक्ष का दृष्टिकोण: समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इन फटकारों को सरकार की नाकामी के रूप में प्रचारित किया, खासकर बुलडोजर कार्रवाई और कानून-व्यवस्था को लेकर।
सुझाव: यदि आप किसी विशिष्ट मामले या समयावधि के बारे में और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया विवरण प्रदान करें, ताकि मैं और गहराई से जवाब दे सकूँ।
निष्कर्ष
योगी सरकार को 2017 से 2025 तक सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, और अन्य संस्थानों द्वारा मुख्य रूप से बुलडोजर कार्रवाई, पुलिसिंग, और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर फटकार मिली। ये मामले सरकार की “जीरो टॉलरेंस” नीति और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की खामियों को उजागर करते हैं। हालाँकि, सरकार ने कई मामलों में सुधार के लिए कदम उठाए, लेकिन विपक्ष ने इन फटकारों को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।
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