उत्तर प्रदेशलखनऊ

मुस्लिम समाज : टूटा ‘मुल्ला मुलायम’ का आईना!

  • 32 साल से मुस्लिम भर रहे हैं सपा की वोटों से झोली
  • मुस्लिम समाज को अखर रही है आजम से अखिलेश की दूरी
  • भाजपा ने जीतीं 82 में से 62 मुस्लिम बहुल्य सीटें
  • मुस्लिमों के दिल में नहीं उतर पाई बसपा
  • राजेन्द्र के. गौतम

मुस्लिम समाज : लखनऊ। अयोध्या में 30 अक्टबूर 1990 को कारसेवकों पर गोलियां चलवाने के घटनाक्रम के बाद तत्कालीन सपा मुखिया अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को ‘मुल्ला मुलायम’ का तमगा मिला था, उसके बाद से समाजवादी पार्टी को एकतरफा Muslim Voters मिलता रहा। लेकिन भावनाओं में बहकर 32 साल से यूपी का मुस्लिम मतदाता (samajwadi party)  का झोला वोटों से भरने का भ्रम 2022 के हुए विधान सभा चुनाव में टूट गया है। इन चुनावों में भाजपा ने 82 में से 62 ऐसी सीटों पर जीत हासिल की थी, जहां मुस्लिम वोटरों की आबादी एक तिहाई है। इससे आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि Muslim Voters बैंक का सपा से मोहभंग हो चुका है। जबकि सबसे अधिक मुस्लिम प्रत्याशी देने के बाद भी बसपा मुस्लिमों के दिल में जगह नहीं बना पाई है।

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बताते चलें कि 30 अक्टबूर 1990 को कारसेवकों पर गोलियां चलवाने के बाद से सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव मुस्लिम समाज में काफी लोकप्रिय हो गए थे। इतने लोकप्रिय हुए कि उन्हें मुस्लिम धर्म गुरूओं ने ‘Mullah Mulayam’ के नाम का तमगा दिया था। यह विश्वास की दीवार 32 साल तक बनी रही। इसी वजह से मुलायम सिंह यादव की पार्टी का यूपी से लेकर केन्द्र तक प्रभाव रहा। 2012 से सपा की कमान उनके पुत्र अखिलेश यादव के हाथों में आने के बाद मुस्लिम समाज को उम्मीद थी कि अपने पिता की तरह वे भी मुस्लिम समाज का ध्यान रखेंगे।

2012 से लेकर 2022 तक के कार्यकाल के दौरान सपा संस्थापक में शुमार वरिष्ठï नेता मोहम्मद आजम खां के खिलाफ हुई एफआईआर के मामले में न तो सपा संरक्षक Mulayam Singh Yadav और न ही सपा मुखिया Akhilesh Yadav ने साथ नहीं दिया। जबकि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अपने कुनबे को बचाने के लिए भाजपा के शीर्ष नेताओं और आरएसएस प्रमुख तक मिले थे। जिससे उनको काफी राहत मिली। यह बात मुस्लिम समाज को काफी अखर रही है।

32 सालों से मुस्लिम समाज सपा को एकमुश्त वोट देता आया है, लेकिन उसके उत्थान के लिए कोई भी बेहतर कदम नहीं उठाए गए। 2022 के चुनाव में सपा ने अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ मिलकर कुल 63 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव में उतारे थे, जिसमें से 36 जीते हैं।

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जबकि BJP ने 86 और Congress ने 60 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। इसके बावजूद एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाए। 2022 के चुनाव मे योगी आदित्यनाथ का कहना था कि यूपी में 80 फीसदी हिंदू भाजपा के पक्ष में है, इसलिए इस बार की लड़ाई 80 बनाम 20 की है। आश्र्यजनक बात ये थी कि भाजपा ने उन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों या सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की होगी। भाजपा ने 62 ऐसी सीटों पर जीत हासिल की थी, जहां मुस्लिम वोटरों की आबादी एक तिहाई है।

वरिष्ठï पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सी. लाल का कहना है कि अगर आप सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की राजनीति को बारीक ढंग से देखेंगे तो पता चलता है कि मुलायम सिंह यादव ने मुस्लिम समाज के लिए कुछ भी नहीं किया। जबकि वोट खूब लिया। अब वही काम उनके पुत्र अखिलेश यादव कर रहे हैं। इस वजह से मुस्लिम समाज को मोहभंग हुआ है। जबकि जमीनी स्तर पर भाजपा की केन्द्र और प्रदेश की सरकारों ने मुस्लिमों के सामाजिक, आर्थिक उत्थान के लिए काफी योजनाएं चलाई हैं।

जिसका सीधा लाभ मुस्लिम समाज के कमजोर तबके को मिल रहा है। भाजपा ने मात्र संकेतिक तौर पर मुस्लिम समाज के कुछ नेताओं को टारगेट किया है। बसपा ने मुस्लिम समाज को राजनीतिक भागेदारी देने के लिए सबसे अधिक प्रत्याशी दिए हैं। इसके बावजूद बसपा मुस्लिमों से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ पाई है। आने वाले दिनों में भाजपा को मुस्लिमों का भारी जनसमर्थन मिलने की संभावना है। 2022 के विधान सभा चुनाव में बसपा के 86 मुस्लिम प्रत्याशी भाजपा के लिए जीत में अहम रोल अदा किया है।


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