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18 साल बाद बसपा फिर लौटी बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय नीति पर

भाजपा का खेल बिगाडऩे के लिए उतारे फारवर्ड वर्ग के तगड़े प्रत्याशी

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  • बसपा कर रही अपने परम्परागत दलित वोट बैंक पर फोकस

निर्भय राज

लखनऊ। बसपा ने अपनी राजनीतिक गलती सुधार ली है। बहुजन से सर्वजन बनने के चक्कर में यूपी की सत्ता हाथ से चली गई और देश भर में तेजी से जनाधार गिरने से राजनीतिक नेपथ्य पर चली गई है। इससे उभरने के लिए 18 साल बाद बसपा फिर से बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की नीति पर लौट आई है। इसी रणनीति के तहत बसपा ने अपने कॉडर और मिशनरी नेताओं को सुरक्षित सीटों पर उतारा है। जहां जातीय समीकरण के आधार पर फारवर्ड जातियों के नेताओं को टिकट देकर भाजपा, कांग्रेस का वहीं मुस्लिम समाज को पर्याप्त राजनीतिक भागेदारी देकर सपा का समीकरण बिगाड़ दिया है।

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उल्लेखनीय है कि बसपा सुप्रीमो मायावती 2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद से अपनी बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय नीति को बदलते हुए सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय कर दिया था। इसका यह असर रहा कि बहुजनों में शिक्षित वर्ग का बसपा के प्रति तेजी से मोहभंग हुआ। जिसकी वजह से बसपा का यूपी की राजनीति में यह स्थिति हो गई कि 2022 के विधान सभा चुनाव में बसपा (BSP) मात्र एक सीट जीत पाई। दलितों की मानी जाने वाली पार्टी जब से सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की पॉलिसी ग्रहण की है तब से दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों का तेजी से बसपा से मोहभंग हुआ है। जिसके परिणाम यह हुआ दलितों का 22.5 फीसदी वोट बैंक में से 10. 88 फीसदी मिला।

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इसके साथ ही धरातल पर मिशनरी और कॉडर के नेता और कार्यकर्ता भी हत्तोसाहित हो गए।  बसपा ने अपने कार्यकर्ताओं खास तौर से युवाओं को जोडऩे के लिए नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को राजनीति के मैदान में उतारा। यूपी के बाहर दौरे और पैदल यात्राएं करवाईं। कुछ दिन पूर्व यूपी में नगीना सीट से धुवांधार आक्रामक प्रचार की शुरूआत कर अपनी जमीन बनाना शुरू कर दिया है। चार-पांच रैलियों में ही आकाश आनंद बहुजन युवाओं में तेजी से लोकप्रिय हो गए हैं। साथ ही मिशनरी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह बढ़ गया है। अब बसपा सुप्रीमो मायावती बड़ी सुनियोजित ढग़ से अपनी 2024 की पहली रैली आज नागपुर से शुरूआत कर आरएसएस के साथ ही भाजपा को तगड़े संकेत देंगी।

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लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत का कहना है कि अच्छी बात है कि बसपा वापस अपने बहुजन एजेंडे पर लौट आई है। लेकिन बीते 18 साल में बसपा ने तेजी से अपनी राजनीतिक जमीन खो दी है। यही वजह है कि बसपा को वापस अपने बहुजन एजेंडे पर लौटना पड़ा है। अगर बसपा वापस अपने एजेंडे पर नहीं लौटती तो इस लोकसभा के चुनाव में परिणाम शून्य आने की संभावना थी। जातीय समीकरण के आधार पर बसपा ने बड़े ही सूझ-बूझ से टिकट वितरण किया है। इस टिकट वितरण का सबसे अधिक असर भाजपा पर पडऩे की संभावना है। बसपा ने इस बार सामान्य सीटों पर फारवर्ड वर्ग के तगड़े प्रत्याशी दिए हैं। साथ ही अपनी बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय नीति पर वापस आने से दलितों का बड़ा वर्ग वापस बसपा लौटेगा।


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