मायावती तोड़ेगी सतीश मिश्र और भाजपा का सियासी चक्रव्यूह!
- BSP चली दलित-मुस्लिम सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले पर
- BSP सुप्रीमो कर सकती है आजमगढ़ में जनसभा
- BSP के चाणक्य को लेकर दोनों खेमों में चुप्पी
BSP : लखनऊ। 2022 के विधान सभा चुनाव में बसपा के चाणक्य ने जोर-शोर से दलित-ब्राह्मïण सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को सफल बनाने के लिए खूब गुब्बारा फुलाया था। चुनाव परिणामों में मिली करारी हार ने इस गुब्बारे को फोड़ कर रख दिया था। परम्परागत दलित वोट बैंक के मोहभंग होने में विलेन की तौर पर अहम भूमिका निभाने के लिए विख्यात बसपा के चाणक्य को बलि का बकरा बनना तय हो गया था। अब लोकसभा की दो सीटों के हो रहे उपचुनावों के मौके पर आजमगढ़ की सीट जीत तय करने के लिए बसपा ने एक तीर से दो कमान साधने की रणनीति बनाई है। पहली दलितों की नाराजगी दूर करने के लिए बसपा चाणक्य को अघोषित तौर पर बाहर का रास्ता दिखा दिया है, दूसरी दलित-मुस्लिम सोशल इंजीनियंरिग फार्मूले को सफल बनाने के लिए मुस्लिम प्रत्याशी को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। अगर बसपा की यह रणनीति कामयाब रही तो आगामी लोकसभा के चुनाव में दलित-मुस्लिम गठजोड़ भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी।
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उल्लेखनीय है कि 2007 में बसपा को यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का मौका मिला था। उस समय यह प्रसारित और प्रचारित किया गया था कि दलित-ब्राह्मïण सोशल इंजीनियरिंग की वजह से यूपी में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है। इसका सारा श्रेय चाणक्य सतीश चंद्र मिश्र को बताया गया था। 2009 में हुए लोकसभा के चुनाव में बसपा ने फिर इसी सोशल इंजीनियंरिग का फार्मूला लागू करने का प्रयास किया था। जिसमें बसपा बुरी तरह से मात खाई थी, साथ ही तमाम नए नारे ब्राह्मïण शंख बजाएगा, हाथी दिल्ली जाएगा। हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मïा, विष्णु महेश है। बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रधानमंत्री बनाने का नारा भी हवा-हवाई साबित हुआ था। इसके बाद 2012 के हुए विधान सभा चुनाव में दलित-ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग का फुग्गा फुलाने की कोशिश की गई थी। फिर वही रिजल्ट ढाक-पांत साबित हुआ था। बसपा को मात्र 80 सीटें मिली थी। 2017 में हुए विधान सभा के चुनाव में बसपा को ृ19 सीटें मिली। 2022 के विधान सभा चुनाव में बसपा के चाणक्य सतीश चंद्र मिश्र के अथक प्रयासों और ब्राह्मïण सम्मेलनों के बावजूद बसपा को मात्र एक सीट मिली। इन परिणामों के साथ ही चाणक्य के जादू की वजह से बसपा में शामिल रहे विभिन्न जातियों के जनाधार वाले नेता पार्टी से बाहर चले गए।
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बसपा सूत्रों का कहना है कि 2022 के हुए चुनावों ने बसपा के चाणक्य का जादू बसपा सुप्रीमो मायावती पर से खत्म हो गया। चाणक्य के जादू के फेर में बसपा शिखर से शून्य पर पहुंच गई है। मार्च 2022 में चुनाव परिणामों के बाद से बसपा सुप्रीमो मायावती ने हार की गहन समीक्षा के बाद पाया कि बहुत ही सुनियोजित ढंग से बसपा के चाणक्य ने उनके परम्परागत दलित वोट बैंक से दूरी बनवाई। जिसकी वजह से दलितों का तेजी से बसपा से मोहभंग हुआ। साथ ही बसपा को भाजपा की बी पार्टी के रूप में भी खूब बदनाम कराया। अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने सतीश चंद्र मिश्र को पार्टी की गतिविधियों से पूरी तरह से साइड लाइन कर दिया है। जिससे दलित वोट बैंक को संदेश दिया जा सके कि बसपा वापस अपने बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के फार्मूल पर वापस आ गई है। साथ ही दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर फोकस कर आजमगढ़ की सीट पर गुड्डïू जमाली को मैदान में उतारा है। जबकि रामपुर की सीट पर प्रत्याशी न खड़ा करके मुस्लिम समाज को संकेत दिए हैं कि बसपा मुस्लिमों की सच्ची हितैषी पार्टी है। यूं तो बसपा उपचुनाव का हमेशा से बायकाट करती आई है, लेकिन अस्तित्व की लड़ाई और भविष्य की चिंता की वजह से बसपा सुप्रीमो मायावती ने आजमगढ़ की सीट पर फोकस किया था। इस सीट पर बसपा की जीत से कई संदेश जाएंगे। जिससे 2024 में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव में बसपा को दलित-मुस्लिम फार्मूले को सफल किया जा सके।
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