BSP Party : 14 साल से राजनीतिक भागेदारी देने के बावजूद मुस्लिमों के दिल में नहीं उतर पाई बसपा!
- बहनजी की ख्वाहिश भाजपा के लिए बनी वरदान
- राजेन्द्र के. गौतम
BSP Party : लखनऊ। कभी यूपी की राजनीति में बसपा की तूती बोलती थी, अब मात्र 14 साल की बहनजी की पुरानी राजनीति और गलत निर्णयों के कारण नेपथ्य पर चली गई है। बसपा सुप्रीमो की यूपी के 20 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक को बसपा से जोडऩे की ख्वाहिश पूरी नहीं हो पाई है। 2012 से लेकर 2022 तक मायावती की यह इच्छा भाजपा के लिए वरदान साबित हुई है। अब बसपा खुद को खड़ा करने के लिए मुस्लिम समाज के बड़े चेहरे और सपा नेता आजम खां को अपने पाले में लाने के लिए लामबंदी में जुट गई है। जिससे मायावती का मुस्लिम वोट बैंक को बसपा के साथ जोडऩे का सपना पूरा हो सके।
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BSP Party : मुस्लिमों के दिल में जगह नहीं बना पाई मायावती
महान सामाजिक चिंतक कबीर दास की यह मुहावरा ‘संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एको काम। दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम’ बसपा सुप्रीमो मायावती पर सटीक साबित होता है। 2009 से लेकर 2022 तक बसपा की राजनीति पर नजर डालें तो पता चला है कि बसपा पार्टी है तो बहुजनों की लेकिन बात सर्वजन की करती है। जोर-शोर से दलित-ब्राह्मïण सोशल इंजीनियरिंग का महिमा मण्डन करती है, लेकिन नजर 20 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक पर है। इसी रणनीति के कारण बसपा को न तो मुस्लिम वोट बैंक मिल पाता है और न ही विश्वास कायम हो पाता है कि भाजपा को बसपा ही चित्त कर सकती है। इसी चक्कर में बसपा का कोर दलित वोट बैंक विधान सभा के 2022 के चुनाव में भी सरक गया है। अब बसपा के पास मात्र 12.5 वोट बचा हुआ है। बसपा के इस बचे वोट बैंक को डकारने के लिए भाजपा हर जोड़-तोड़ कर रही है।
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खतरे में है बसपा का वजूद!
(BSP Party) बसपा सूत्रों का कहना है कि बसपा सुप्रीमो मायावती को इस बात का अच्छी तरह से एहसास है कि अगर 2022 के नगर निकाय और लोकसभा की रामपुर व अम्बेडकर नगर के उपचुनाव में बेहतर परफार्मेंस नहीं किया तो 2024 के लोकसभा में पार्टी का पूरी तरह से राजनीतिक वजूद खो जाएगा। इसलिए बसपा ने अम्बेडकर नगर की लोकसभा के उपचुनाव के लिए पहले से ही गुड्डïू जमाली को मैदान में उतार दिया है। बसपा रामपुर की लोकसभा के उपचुनाव के लिए सपा संस्थापकों में शुमार मोहम्मद आजम खां के परिवार को अपना उम्मीदवार बनाना चाहती है। बसपा सुप्रीमो मायावती इसके माध्यम से एक तीर से दो निशाना साध रही हैं। पहला मुस्लिमों के बसपा के साथ जुडऩे से दलित-मुस्लिम सोशल इंजीनियरिंग कामयाब हो सकती है। दूसरा अगर आजम खां के परिवार से कोई सदस्य बसपा के टिकट पर चुनाव में उतरता है सपा मुखिया अखिलेश यादव को तगड़ा झटका माना जाएगा।
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अखिलेश को सबक सिखाएंगे माया और आजम
वरिष्ठï पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ए.पी. दीवान का कहना है कि वैसे अगर आप बसपा की मुस्लिम राजनीति पर नजर डाले तो पता चलता है कि बसपा राजनीतिक भागेदारी देने के बावजूद मुस्लिम समाज के दिल में जगह नहीं बना पाई है। इसी वजह से मायावती की दलित-मुस्लिम रणनीति सफल नहीं हो पा रही है। इससे भाजपा को जरूर फायदा होता है। बदली परिस्थितियों में अगर बसपा मोहम्मद आजम खां को अपने पाले में लाने में सफल हो जाती है तो यह सपा मुखिया अखिलेश यादव को बड़ा झटका माना जाएगा। साथ ही राजनीतिक नेपथ्य पर पहुंच चुकी बसपा के लिए संजीवनी साबित होगा। पर्दे के पीछे बहनजी और मोहम्मद आजम खां के बीच राजनीतिक खिचड़ी पक रही है, इसलिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट कर कहा है कि मोहम्मद आजम खां के साथ बीते ढाई साल से उत्पीडऩ हो रहा है। उम्मीद है कि आने वाले छह माह के अंदर मोहम्मद आजम खां बसपा में शामिल होकर टीपू यानी अखिलेश यादव को चित्त करने की मुहिम में बड़ा रोल अदा कर सकते हैं।
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