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इंडिया गठबंधन में बुआ की एंट्री से बबुआ हलकान!

सपा-बसपा राजनीतिक उथल-पुथल

BSP : लखनऊ। सपा मुखिया अखिलेश यादव के प्रबल विरोध के बावजूद  बसपा सुप्रीमो मायावती को इंडिया गठबंधन में शामिल करने के लिए मिल रही अधिक तवज्जो से खासे भन्नाए हुए हैं। यही कारण है कि गाहे-बगाहे बसपा पर राजनीतिक कटाक्ष कर जहां अपनी भड़ास निकालने का प्रयास कर रहे हैं वहीं उनके इस व्यवहार से पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) के सामाजिक गठजोड़ खतरे में हैं। एक-दूसरे पर सपा-बसपा का कीचड़ उछालो अभियान से कांग्रेस और भाजपा की पौ-बारह है। बताते चलें कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने कई बार प्रेसवार्ता कर इस बात को साफ किया कि वे न तो एनडीए और न ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनेंगी।

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इंडिया गठबंधन की कई बैठकों में सपा मुखिया अखिलेश यादव इस बात का दबाव बनाया कि बसपा पर स्थिति साफ करें। साथ ही सपा मुखिया और कई नेता समय-समय पर बसपा को लेकर राजनीतिक टीका-टिप्पणी करते रहते हैं। इसके प्रत्युत्तर में बसपा सुप्रीमो मायावती और नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद ने सपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बसपा सुप्रीमो ने जहां सपा को दलित विरोधी करार दिया वहीं आकाश आनंद ने फिर से बसपा (BSP) का राजनीतिक श्लोगन ‘चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर’ दोहराकर सपा को चिढ़ाया।

2022 के विधान सभा चुनाव में मुस्लिम समाज का जबरदस्त समर्थन के बावजूद सपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई। सपा के वरिष्ठï नेता मोहम्मद आजम खां और मुस्लिमों के मुद्दे पर सपा मुखिया अखिलेश यादव की बेरूखी का कुछ माह पूर्व अल्पसंख्यक समाज के विद्वानों और धर्मगुरूओं के साथ ही बैठक यह निचोड़ आया कि अल्पसंख्यक समाज सपा मुखिया के रवैया से काफी नाराज है। उसका मानना है कि सपा को मुस्लिमों का भरपूर समर्थन के बावजूद सपा मुखिया अखिलेश यादव चुप्पी साध लेते हैं।

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अगर भाजपा को चुनाव में हराना है तो कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बसपा (BSP) को शामिल करें। इसी वजह से सपा मुखिया हिले हुए हैं कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम समाज का समर्थन कांग्रेस की ओर चला जाएगा। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत ने कहा कि राजनीतिक परिपवक्ता की कमी के कारण सपा प्रमुख अखिलेश यादव नादानी कर रहे हैं। यह समय आपस में लडऩे के बजाए इंडिया गठबंधन को मजबूत करने और संविधान व लोकतंत्र को बचाने का है। सपा-बसपा की एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक बयानबाजी से 85 फीसदी समाज निराश है। साथ ही इसका असर एक-दूसरे के कैडर पर पड़ रहा है। एक-दूसरे को कमजोर करने की मुहिम से भाजपा को फायदा होगा। दोनों पार्टी को बयानबाजी से बचना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल का कहना है कि चाहे सपा हो या फिर बसपा दोनों पार्टियां हिन्दू वोट बैंक दलित, पिछड़ा के जाति की राजनीति करते आए हैं। भाजपा के मुखर हिन्दुत्व से सपा-बसपा के राजनीतिक अस्तित्व खतरे में है। इन दोनों पार्टियों को इस बात का अच्छी तरह से एहसास है कि अगर इंडिया गठबंधन के बगैर चुनाव लड़े तो रिजल्ट जीरो होने की संभावना अधिक है। यही वजह है कि सपा-बसपा (BSP) एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल अभियान चला रही है। इससे कांग्रेस और भाजपा को फायदा होगा। अगर सपा-बसपा अकेले लोकसभा के चुनाव मैदान में जाती है तो भाजपा को अधिक फायदा होने की संभावना है। साथ ही कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव में फायदा न उठा पाए लेकिन 2027 के विधान सभा चुनाव के लिए अभी से यह धारणा बनाने में सफल हो जाएगी कि सपा-बसपा आपस में लड़ती है और भाजपा का विकल्प कांग्रेस ही है।


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