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मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह के फैसलों पर उठे सवाल!

‘राज्य हित’ की आड़ में अरबों के राजस्व की चपत!

  • UP Bureaucracy
  • पीएमओ और डीओपीटी व विजिलेंस में हुई साक्ष्यों के साथ शिकायत 
  • डीओपीटी ने यूपी सरकार को कार्रवाई के लिए भेजा पत्र
  • ग्रेटर नोएडा विकास अथारिटी के पूर्व अध्यक्ष की रिपोर्ट को किया ओवर लुक

लखनऊ। ओल्ड ट्रैक रिकार्ड के चलते यूपी की नौकरशाही के ‘खिलाडिय़ों के खिलाड़ी’ आईएएस के रूप में विख्यात मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह द्वारा कुछ ‘निजी औद्योगिक संस्थानों’ के लिए ‘राज्य हित’ में किए गए फैसले सवालों के घेरे में आ गए हैं। ‘राज्य हित’ की आड़ में मुख्य सचिव द्वारा किए गए निर्णयों से यूपी सरकार को अरबों रुपए के राजस्व का चूना लगाने का आरोप है। इस मामले की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय और केन्द्रीय सतर्कता आयोग से की गई है। इस शिकायत पर केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने यूपी सरकार को पत्र लिखकर कार्रवाई करने को निर्देशित किया था। इससे यूपी सरकार में हडक़प मचा हुआ है। जहां यूपी के सबसे ताकतवर आईएएस का मामला होने के कारण बीते पांच माह से यह पत्र ठंड़े बस्ते में पड़ा हुआ है वहीं सत्ता के गलियारों में इस पत्र की खूब चर्चा है।

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आपको बताते चलें कि नई दिल्ली निवासी सुबित कुमार सिंह ने 12  नवंबर 2024 को प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश, औद्योगिक विकास मंत्री, सेक्रेटरी डीओपीटी, सीबीआई, ईडी को मुख्य सचिव, औद्योगिक विकास आयुक्त, गोरखपुर इंडस्ट्रयिल डेपलमेंट एथारिटी, ग्रेटर नोएडा एथारिटी, नोयडा डेवलेपमेंट एथारिटी और इंडस्ट्रयिल डेपलमेंट डिर्पाटमेंट की रिविजनल बेंच के मुखिया मनोज कुमार सिंह के कारनामों की तीन पेज की शिकायत के साथ 90 पत्रों का संलग्नक भेजा है। भेजी गई शिकायत में आरोप लगाया है कि मुख्य सचिव ने मनोज कुमार सिंह ने नियमों को ताक पर रखकर कुछ ‘निजी औद्योगिक संस्थानों’ को लाभ पहुंचाया है।

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शिकायतों की फेहरिश्त में उल्लेख किया गया है कि मुख्य सचिव, औद्योगिक विकास आयुक्त, गोरखपुर इंडस्ट्रयिल डेपलमेंट एथारिटी, ग्रेटर नोएडा एथारिटी, नोयडा डेवलेपमेंट एथारिटी और इंडस्ट्रयिल डेपलमेंट डिर्पाटमेंट की रिविजनल बेंच के मुखिया मनोज कुमार सिंह ने बीते एक साल के अंदर छह निजी औद्योगिक संस्थानों को नियम-कानून ताक पर रखकर फैसले दिए हैं। जिनमें आईएसजीईसी हेवी इंजीनियरिंग, इशान एजूकेशनल रिसच, जुबलियंट फुटवर्क, कवेरी कोआपरेटिव, मारूती एजूकेशनल ट्रस्ट और वेव मेगा सिटी सेंटर पर खासी मेहरबानी दिखाई। शिकायत में इन कम्पनियों के साथ ही छह अन्य क पनियों का उल्लेख किया गया है। कडक़ फैमली टी, कान्हा सा टेक, कपरेवा डेवलेपमेंट, केसीएल, कायनेटिक बुल्डटेक, लासेंट इंफोकॉम हैं। जहां इन निजी क पनियों को नियमों को ताक पर रखकर अरबों रुपए का लाभ पहुंचाया गया है वहीं अरबों रुपए के सरकार के राजस्व को चपत लगाई गई है।

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उदाहरण के तौर पर आप वेब मेगा सिटी सेंटर का मामला ले सकते हैं। शिकायत के मुताबिक इस कंपनी  के जरिए सरकार को लगभग 1443 करोड़ रुपए के राजस्व की चपत लगी है। नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने वेव मेगा सिटी सेंटर प्रा.लि. को 3 सित बर 2011 को 6,18, 952.75 वर्ग मीटर भूमि को लीज डीड हस्ताक्षरित की थी। परियोजना के प्लॉन को स्वीकृत वर्ष 2012 प्रदान की गई। समय पर परियोजना पूर्ण न कर पाने के लिए वेव मेगा सिटी ने विश्व मंदी और अन्य कारणों का हवाला दिया है। इस पर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने वेव मेगा सिटी सेंटर को 7 डिमांड नोटिस दिए।

इस प्रकरण को लेकर 14 अगस्त 2017 को एक जांच कमेटी बनी थी। जिसमें ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष राहुल भटनागर, नोएडा के पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी आलोक टण्डन, पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी देवाशीष पाण्डा, पूर्व अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमर नाथ उपाध्याय और मुख्य कार्यपालक अधिकारी डा. अरूणवीर सिंह थे। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष राहुल भटनागर ने 26 सित बर 2017 को तत्कालीन प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास विभाग आलोक सिन्हा को अपनी जांच रिपोर्ट भेजी थी।

जांच रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि प्रोजेक्ट सेटलमेंट पॉलिसी के प्रस्तर 4 ग में वर्णित सातों प्रस्तरों में स्पष्टï है कि आवंटी द्वारा आंशिक परियोजना का त्याग किए जाने पर आवंटी भूमि के कुल प्रीमियम के विरूद्घ भुगतान की गई धनराशि में से 15 प्रतिशत जब्त करते हुए 05 प्रतिशत धनराशि के समतुल्य आवंटी को आवंटित भूमि में से ही भूमि के रूप में वापस दिए जाने का प्रावधान है। समिति का मत है कि आवंटित भूमि का कुल प्रीमियम, आवंटित क्षेत्रफल एवं उस हेतु प्राप्त स्वीकृत निविदा दर से आगणित मूल्य ही होता है। इस प्रीमियम के भुगतन हेतु आगामी वर्षों में मय ब्याज के किश्तों का निर्धारण होता है। ब्याज मूल रूप से प्रीमियम का हिस्सा नहीं होता है।

इस जांच रिपोर्ट को ताक पर रखकर मुख्य सचिव और औद्योगिक विकास आयुक्त मनोज कुमार सिंह प्राधिकरण के मत को नजरअंदाज करते हुए प्राधिकरण का लीज निरस्तीकरण आदेश 11 फरवरी 2021 का निरस्त करते हुए लीज निशुल्क रिस्टोर किया है। साथ ही आवंटित भूखण्ड 1,08,421 वर्ग मीटर पर कोई थर्ड पार्टी राइट्स क्रिएट नहीं किए जाने के भी आदेश किए हैं। इस संबंध में मुख्य सचिव और औद्योगिक विकास आयुक्त मनोज कुमार सिंह से कई बार संपर्क किए जाने पर प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई।

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