Artificial Rain: स्वदेशी तकनीक से लखनऊ में कृत्रिम बारिश का ट्रायल करेगा IIT कानपुर!
भारत पहली बार स्वदेशी तकनीक से कराएगा कृत्रिम बारिश का परीक्षण
Artificial Rain: अच्छी खबर! पहली बार भारत पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल करके कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) कराने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है. IIT कानपुर की एक विशेषज्ञ टीम लखनऊ में इस तकनीक का परीक्षण करेगी. यह ट्रायल देश में सूखे और जल संकट से निपटने के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है.
कैसे होगी कृत्रिम बारिश?
इस तकनीक को ‘क्लाउड सीडिंग’ के नाम से जाना जाता है. इसमें, विमानों की मदद से बादलों में रसायनों का छिड़काव किया जाता है, जिससे वायुमंडल में मौजूद नमी संघनित होकर पानी की बूंदों का निर्माण करती है. ये बूंदें जल्द ही इतनी भारी हो जाती हैं कि वे बारिश के रूप में नीचे आ गिराती हैं.
स्वदेशी तकनीक के फायदे
इस स्वदेशी तकनीक के सफल परीक्षण के कई फायदे हो सकते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा सूखे से प्रभावित इलाकों में मानसून को प्रोत्साहित कर बारिश कराना है. साथ ही, यह प्रदूषण कम करके वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने में भी सहायक हो सकती है.
चुनौतियां भी हैं
हालांकि, इस तकनीक से जुड़ी कुछ चुनौतियां भी हैं. पर्यावरण पर इसके संभावित दुष्प्रभावों का अध्ययन अभी भी जारी है. साथ ही, यह तकनीक अभी विकास के दौर में है और हर बार सफलता की गारंटी नहीं ली जा सकती.
कब होगा ट्रायल?
यह ट्रायल आगामी 2024 के मानसून सीजन के दौरान लखनऊ में किया जाएगा. कृत्रिम वर्षा की इस स्वदेशी तकनीक के सफल परीक्षण से ना सिर्फ सूखा प्रभावित क्षेत्रों को राहत मिलेगी बल्कि यह वायु प्रदूषण कम करके जनस्वास्थ्य में भी सुधार ला सकता है.
IIT कानपुर के लिए मील का पत्थर
यह ट्रायल IIT कानपुर के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा. इससे संस्थान की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन होगा और भारत के अग्रणी अनुसंधान संस्थानों में इसकी स्थिति और मजबूत होगी.
आत्मनिर्भर भारत और दुनिया को फायदा
इस स्वदेशी तकनीक के सफल विकास से भारत कृत्रिम वर्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकेगा. इससे ना सिर्फ सूखे का प्रकोप कम होगा बल्कि वायु प्रदूषण जैसी विकट समस्याओं से भी निजात मिलने की उम्मीद जगेगी. इतना ही नहीं, यह ट्रायल दुनिया को कृत्रिम वर्षा की तकनीक के विकास में भी सहयोग करेगा.
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