उत्तर प्रदेशराजनीतिराष्ट्रीय

Mayawati:माया की वजह से बसपा पहुंची अर्श से फर्श पर

  • बहुजन से सर्वजन बनने का खामियाजा
  • गरीब-गुरबों की पार्टी का सदस्यता शुल्क सबसे महंगा
  • थैली डिमांड से बीएसपी में भगदड़
  • भाजपा की नजर दलित वोट बैंक पर

राजेन्द्र के. गौतम
लखनऊ। इसे बसपा सुप्रीमो Mayawati का आत्मघाती कदम कहें या फिर बहुजनों का दुर्भाग्य, मान्यवर कांशीराम के नेतृत्व में 15 बनाम 85 प्रतिशत के आंदोलन से निकले विभिन्न जातियों के जनाधार वाले नेताओं को एक-एक करके निकाल देने से बसपा अपने 38 साल के राजनीतिक सफर में अर्श से फर्श पर पहुंच गई है।

बसपा के रसाताल में पहुंचने के कारण यह है कि अपने विरोधियों को निपटाने में बसपा सुप्रीमो की नो अपील, नो वकील, नो दलील की कार्यशैली के कारण जहां मिशनरी और कॉडर के नेताओं का मोहभंग हुआ है वहीं थैली डिमांड से पार्टी नेताओं में भगदड़ मची हुई है। बसपा की दिन पर दिन कमजोर होती स्थिति का लाभ उठाने के लिए भाजपा और सपा ने दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाने गरज से दलितों के मसीहा बाबा साहब डा. भीमराव का गुणगान कर लुभाना शुरू कर दिया है।

कांशीराम के फार्मूल से बसपा की बनी चार बार सरकार

mayawati
mayawati

 

बताते चलें कि 14 अप्रैल 1984 को मान्यवर कांशीराम ने दलितों और पिछड़ों में राजनीतिक चेतना लाने के लिए बसपा का गठन किया था। जब तक मान्यवर कांशीराम ने पार्टी की कमान संभाल रखी थी तब तक बसपा ने हर जाति-बिरादरी के नेता जुड़े थे और मिशनरी मोड में काम कर रहे थे। इसका लाभ यह हुआ कि भाजपा से तीन बार गठबंधन और एक बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी।

साथ ही दूसरे राज्यों में भी बसपा का तेजी से जनाधार बढऩे लगा। जब से बसपा सुप्रीमो Mayawati के हाथ पार्टी की कमान आई तब से पार्टी का पतन शुरू हो गया। 2009 से लेकर 2022 तक बसपा सुप्रीमो की गलत नीतियों के कारण जहां यूपी में करारी हार का सामना करना पड़ा वहीं जनाधार तेजी से गिरकर आधा हो गया है।

यूपी को छोडक़र दूसरे राज्यों में भी बसपा का प्रदर्शन काफी बुरा रहा है। जिन-जिन राज्यों में बसपा ने गठबंधन किया है वहां भी बुरी तरह से असफलता हाथ लगी है। ताजा उदाहरण पंजाब में अकाली दल से बसपा का हुए गठबंधन की हार से अंदाजा लगा सकते हैं।

Mayawati साख खोती बसपा के वोट बैंक पर भाजपा की नजर

mayawati
mayawati

बसपा के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 2009 से मिल रही हार की समीक्षा को गंभीरता से नहीं किया जाता है। न तो हार के कारण से सीख लिया जाता है और न ही दूसरी जातियों के जनाधार को जोडऩे का अभियान चलाया जाता है।

उलटे हर दिन जनाधार वाले नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप लगा कर बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। 2022 की हार के बाद से पार्टी के पदाधिकारियों का मनोबल काफी गिर गया है। उम्मीद थी कि बहनजी कोई बदलाव करेंगी। लेकिन ऐसी संभावना कम हैं। मात्र थोड़ा बहुत सांगठनिक फेरबदल करने से कोई बेहतर रिजल्ट नहीं मिलेगा।

इसके साथ ही गरीब-गुरबों की पार्टी की सदस्यता शुल्क भाजपा-कांग्रेस जैसी पार्टियों से कई गुना अर्थात दो सौ रुपए हैं। इसके साथ ही प्रत्येक जिलाध्यक्ष को बीस लाख रुपए प्रतिमाह पार्टी फंड में सहयोग के नाम पर मांगा जा रहा है। इससे बसपा में काफी आक्रोश है। इस स्थिति का लाभ भाजपा उठाना चाहती है।

भाजपा ने दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए बाबा साहब अम्बेडकर के नाम पर लोकलुभावना अभियान छेड़ रखा है। बसपा के कॉडर के नेताओं को भाजपा से जोडऩे के लिए एक गुप्त अभियान चलाया जा रहा है। टेलीफोनिक संवाद, गुप्त संवाद, सार्वजनिक संवाद के जरिए सम्पर्क किया जा रहा है।

दुविधा में है दलित समाज

mayawati
mayawati

राजनीतिक विश्लेषक और नामचीन वरिष्ठï पत्रकार चंद्रभान प्रसाद का कहना है कि राजनीतिक दलों के पास दलित समाज के लिए कोई आर्थिक विजन नहीं है। इसी वजह से चाहे कांग्रेस हो या फिर बसपा इस वर्ग का विश्वास खो दिया है। मौजूदा समय दलित समाज सबसे कठिनतम दौर से गुजर रहा है।  दलित समाज के लोगों को लगता है कि भाजपा संविधान को बदल देगी। बहुजन डायवर्सिटी मिशन के संस्थापक और नामचीन लेखक एच.एल. दुसाद का कहना है कि मान्यवर कांशीराम ने एक नारा दिया था कि बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय।

इस नारे का मर्म था कि सदियों से सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक तौर पर प्रताडि़त किए गए दलित समाज उनकी जनसंख्या के मुताबिक भागेदारी मिले। लेकिन इसमें बसपा फेल हो गई है। इस वजह से दलित समाज ने अपना दुसरा विकल्प तलाशना शुरू कर दिया है। पूर्व वित्त मंत्री कमलाकांत गौतम का कहना है कि बहनजी ने दलितों के साथ धोखा किया है। मान्यवर कांशीराम जी से बड़ा बनने के फेर में बहुजन से सर्वजन बनने का सपना देखा था। उसमें पूरी तरह से फेल हुई हैं।

इसी वजह से दलित समाज भी बहनजी के प्रति यह धारणा बना ली है कि उनकी वह हितैषी नहीं है। इस वजह से 2022 के चुनाव में दलित समाज का बसपा से मोहभंग हो गया है।


Read more:Karisma Kapoor: ब्राउन से सिल्वर स्क्रीन पर वापसी करेंगी

E-paper:http://www.divyasandesh.com

Related Articles

Back to top button