JNU : संघर्ष ने सरिता माली को झुग्गी से पहुंचाया अमेरिका तक
- मुम्बई के स्लम एरिया से JNU में Ph.D तक का सफर…
JNU : सरिता माली एक अति पिछड़ी जाति और समाज से हैं, उनका कहना है कि मेरे पुरखों ने अपने समय में जजमानी करके अपना पेट भरा। मेरे पापा आज भी फूल बेंचतें हैं। उनको ph.d का केवल इतना मतलब पता है कि मेरे नाम के आगे डॉक्टर लग जाएगा। थीसिस का मतलब वो नही जानते बस इतना समझते है कि मैं एक किताब लिख रही हूँ। जो इस देश के बड़े काम आएगी। हमारे लिए 5000 या 6000 रु. बहुत मायने रखता है साहब। मैं हमेशा से पढ़ाई में अव्वल रही गोल्ड मेडलिस्ट होने के साथ- साथ सैकड़ों डिबेट कॉम्पटीशन की विनर रही।
लेकिन पढ़ाई के लिए अगर JNU न होता तो शायद पता नही आज मैं कहाँ होती। मैं अपने समाज की पहली लड़की हूँ जो उच्च शिक्षा तक पहुंच पायी हूँ। सदियों की यातना और संताप को JNU ने खत्म किया। बरसों की गुलामी की जंजीरों को मेरे पापा की हमें पढ़ाने की जिद्द और JNU ने तोड़ दिया। ऐसे विश्वविद्यालय को मरने मत दीजिये। मेरा समाज उठने से पहले गिर जाएगा। शिक्षित होने से पहले अशिक्षा के अंधकार में डूब जाएगा।
यह JNU की ही देन है आज मेरा पूरा परिवार देश के इस उन्मादी और जहरीले माहौल से कोसो दूर है। JNU को लड़ना होगा। और हम लड़ेंगे क्योंकि यह लड़ाई भारत के अंधकार में डूबे हुए पिछड़े समाज को रोशनी में लाने की लड़ाई की है। जिसे बड़ी ही चालाकी से शिक्षा से वंचित किया जा रहा है। नीचे की तस्वीर उन लोगों के लिए लगा रही हूँ जो यह कहतें हैं कि JNU में प्रोटेस्ट करनेवाले ‘ये बच्चे’ पढ़ते- लिखते नही है।
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JNU : यूपी का किया नाम रोशन
- मुंबई की झोपड़पट्टी से जेएनयू तक का सफ़र…
- अब जेएनयू से अमेरिका का सफ़र…
मेरा अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में चयन हुआ है यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंग्टन मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया को वरीयता दी है। मुझे इस यूनिवर्सिटी ने मेरी मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप में से एक ‘चांसलर फ़ेलोशिप’ दी है।
मुंबई की झोपड़पट्टी, जेएनयू , कैलिफ़ोर्निया, चांसलर फ़ेलोशिप,अमेरिका और हिंदी साहित्य… कुछ सफ़र के अंत में हम भावुक हो उठते हैं क्योंकि ये ऐसा सफ़र है जहाँ मंजिल की चाह से अधिक उसके साथ की चाह अधिक सुकून देती हैं। हो सकता है आपको यह कहानी अविश्वसनीय लगे लेकिन यह मेरी कहानी है मेरी अपनी कहानी। मैं मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से हूँ लेकिन मेरा जन्म और मेरी परवरिश मुंबई में हुयी।
मैं भारत के जिस वंचित समाज से आई हूँ वह भारत के करोड़ो लोगो की नियति है लेकिन आज यह एक सफल कहानी इसलिए बन पाई है क्योंकि मैं यहाँ तक पहुंची हूँ। जब आप किसी अंधकारमय समाज में पैदा होते हैं तो उम्मीद की वह मध्यम रौशनी जो दूर से रह -रहकर आपके जीवन में टिमटिमाती रहती है वही आपका सहारा बनती है। मैं भी उसी टिमटिमाती हुयी शिक्षा रूपी रौशनी के पीछे चल पड़ी। मैं ऐसे समाज में पैदा हुयी जहाँ भुखमरी, हिंसा, अपराध, गरीबी और व्यवस्था का अत्याचार हमारे जीवन का सामान्य हिस्सा था।
हमें कीड़े-मकोड़ो के अतिरिक्त कुछ नही समझा जाता था, ऐसे समाज में मेरी उम्मीद थे मेरे माता-पिता और मेरी पढाई। मेरे पिताजी मुंबई के सिग्नल्स पर खड़े होकर फूल बेचते हैं। मैं आज भी जब दिल्ली के सिग्नल्स पर गरीब बच्चों को गाड़ी के पीछे भागते हुए कुछ बेचते हुए देखती हूँ तो मुझे मेरा बचपन याद आता और मन में यह सवाल उठता है कि क्या ये बच्चे कभी पढ़ पाएंगे? इनका आनेवाला भविष्य कैसा होगा? जब हम सब भाई- बहन त्यौहारों पर पापा के साथ सड़क के किनारे बैठकर फूल बेंचते थे तब हम भी गाड़ी वालो के पीछे ऐसे ही फूल लेकर दौड़ते थे। पापा उस समय हमें समझाते थे कि हमारी पढ़ाई ही हमें इस श्राप से मुक्ति दिला सकती है।
अगर हम नही पढेंगे तो हमारा पूरा जीवन खुद को जिन्दा रखने के लिए संघर्ष करने और भोजन की व्यवस्था करने में बीत जायेगा। हम इस देश और समाज को कुछ नही दे पायेंगे और उनकी तरह अनपढ़ रहकर समाज में अपमानित होते रहेंगे। मैं यह सब नही कहना चाहती हूँ लेकिन मैं यह भी नही चाहती कि सड़क किनारे फूल बेचते किसी बच्चे की उम्मीद टूटे उसका हौसला ख़त्म हो। इसी भूख अत्याचार, अपमान और आसपास होते अपराध को देखते हुए २०१४ में मैं जेएनयू हिंदी साहित्य में मास्टर्स करने आई। सही पढ़ा आपने ‘जेएनयू’ वही जेएनयू जिसे कई लोग बंद करने की मांग करते हैं, जिसे आतंकवादी, देशद्रोही, देशविरोधी पता नही क्या क्या कहतें हैं
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लेकिन जब मैं इन शब्दों को सुनती हूँ तो भीतर एक उम्मीद टूटती है। कुछ ऐसी ज़िंदगियाँ यहाँ आकर बदल सकती हैं और बाहर जाकर अपने समाज को कुछ दे सकती हैं यह सुनने के बाद मैं उनको ख़त्म होते हुए देखती हूँ। यहाँ के शानदार अकादमिक जगत, शिक्षकों और प्रगतिशील छात्र राजनीति ने मुझे इस देश को सही अर्थो में समझने और मेरे अपने समाज को देखने की नई दृष्टि दी। जेएनयू ने मुझे सबसे पहले इंसान बनाया. यहाँ की प्रगतिशील छात्र राजनीति जो न केवल किसान-मजदूर, पिछडो, दलितों, आदिवासियों, गरीबों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों के हक़ के लिए आवाज उठाती है बल्कि इसके साथ – साथ उनके लिए अहिंसक प्रतिरोध करना का साहस भी देती है.
जेएनयू ने मुझे वह इंसान बनाया, जो समाज में व्याप्त हर तरह के शोषण के खिलाफ बोल सके। मैं बेहद उत्साहित हूँ कि जेएनयू ने अब तक जो कुछ सिखाया उसे आगे अपने शोध के माध्यम से पूरे विश्व को देने का एक मौका मुझे मिला है। २०१४ में 20 साल की उम्र में मै JNU मास्टर्स करने आई थी और अब यहाँ से MA, M.PhiL की डिग्री लेकर इस वर्ष PhD जमा करने के बाद मुझे अमेरिका में दोबारा PhD करने और वहां पढ़ाने का मौका मिला है। पढाई को लेकर हमेशा मेरे भीतर एक जूनून रहा है। 22 साल की उम्र में मैंने शोध की दुनिया में कदम रखा था। खुश हूँ कि यह सफ़र आगे 7 वर्षो के लिए अनवरत जारी रहेगा।
अब तक मेरे जीवन में मुझे ऐसे शिक्षक मिले जिन्होंने न केवल मुझे पढाया बल्कि हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया मेरे यहाँ तक पहुँचने में इन गुरुजनों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मैं सर्वप्रथम अपने स्कूल के शिक्षक Rajiv Singh Sir को धन्यवाद् देना चाहूंगी, सोमैया कॉलेज के मेरे शिक्षक Dr. Satish Pandey Sir, JNU में मेरे शोध निर्देशक Professor Devendra Kumar Chaubey, Professor Om Prakash Singh, Professor Raman Prasad Sinha, Professor Rambux Jat, मेरे सह – शोध निर्देशक Dr. Harish Wankhede, Dr. Pradeep Shinde Sir और महारष्ट्र से मेरे शोध में हमेशा मेरी सहायता करने वाले Dr. Manohar Bhandare Sir इन सभी का मैं ह्रदय से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ। इसके अतिरिक्त जिन सीनियर्स ,जूनियर्स और दोस्तों से मैंने बहुत कुछ सीखा और इन्होंने इस सफ़र को खुबसूरत बनाया उन्हें भी इस पोस्ट में टैग कर रही हूँ इसे वे अपने प्रति मेरा प्रेम और सम्मान समझें.
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