चार राज्यों के चुनाव के बाद बसपा खोलेगी पत्ते!
- मायावती ‘वेट एंड वाच’ की रणनीति पर कर रही हैं अमल
- ‘इंडिया’ के साथ जाएं या फिर ‘राजग’ का करें सपोर्ट
निर्भय राज
BSP : लखनऊ। एक तरफ कांग्रेस नेतृत्व वाली विपक्षी पार्टियां ‘इंडिया’ के जरिए और दूसरी तरफ भाजपा नेतृत्व वाली सत्तारुढ़ पार्टियां ‘राजग’ के जरिए 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए ताल ठोंकना शुरू कर दिया है। इस कवायद के बीच बसपा ‘वेट एंड वाच’ की रणनीति पर काम कर रही है। दिस बर तक चार राज्यों में होने वाले चुनाव के बाद बसपा अपने पत्ते खोलेगी कि वह ‘इंडिया’ के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन का हिस्सा बने या फिर राजग के साथ बगैर गठबंधन के अपना ‘मूक समर्थन’ जारी रखे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यूपी में कमजोर हो चुकी बसपा के पास गठबंधन के सिवाए कोई विकल्प नहीं बचा है।
बताते चलें कि यूपी में चार बार सत्ता का स्वाद चख चुकी बसपा ने जब-जब चुनाव पूर्व गठबंधन किया है तब-तब सफलता मिली है। 1993 में सपा से बसपा का गठबंधन हुआ था। इस चुनाव में बसपा 67 सीटें जीती थी। फिर 1996 में कांग्रेस से विधान सभा चुनाव के लिए गठबंधन हुआ था। इस चुनाव में भी बसपा 67 सीटें जीती थी। इसके बाद बसपा का 2019 में लोकसभा चुनाव के लिए सपा से गठबंधन हुआ था। इस चुनाव में बसपा के 10 सांसद जीतने में सफल हुए थे। 2007 के बाद से बसपा तेजी से मु य धारा से गायब हो रही है। 2022 के हुए विधान सभा चुनाव में बसपा का मात्र एक विधायक ही जीत पाया। 2023 में हुए नगर निकाय के चुनाव में बसपा का प्रदर्शन काफी निराशा जनक भरा है।
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दो मेयर की सीटें भी बरकरार नहीं रख पाई बसपा। यह बसपा की 2022 के विधान सभा चुनाव में दलित-ब्राह्मïण सोशल इंजीनियरिंग फेल हुई और 2023 में हुए नगर निकाय के चुनाव में बसपा की दलित-मुस्लिम सोशल इंजीनियरिंग बुरी तरह से फेल हुई। बसपा कॉडर के कई महत्वपूर्ण पदाधिकारियों का कहना है कि बीते कई चुनावों में बसपा को अपेक्षित सफलता न मिलने से हताशा है। अगर बसपा ने लोकसभा चुनाव में गठबंधन नहीं किया तो परिणाम जीरो आ सकते हैं।
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वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मौर्याकुर प्रभात का कहना है कि बसपा अपनी गलत नीतियों के कारण जनाधार तेजी से खो रही है। 2022 के विधान सभा और 2023 के नगर निकाय के चुनाव परिणाम इस ओर इशारा कर रहे हैं। बसपा के चुनाव पूर्व गठबंधन का परिणाम देखें तो पता चलता है कि चुनाव पूर्व गठबंधन बसपा के लिए काफी फायदेमंद साबित हुए हैं। अगर बसपा लोकसभा चुनाव में बगैर गठबंधन के मैदान में उतरती हैं तो परिणाम 2022 के विधान सभा चुनाव की तरह ही होंगे।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सी. लाल का कहना है कि (BSP) बसपा की 2014 से गतिविधियों को देखें तो यह इमेज बनती है कि बसपा भाजपा की बी टीम बन कर रह गई है। यही धारणा जनता में भी है। उनका मानना है कि (BSP) बसपा सुप्रीमो मायावती सीबीआई और ईडी की वजह से अपने राजनीतिक मुहिम को जमीनी स्तर पर कमजोर कर दिया है। जबकि सपा मुखिया अखिलेश यादव कई बार सार्वजनिक तौर पर यह आरोप लगा चुके हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव (BSP) बसपा के लिए एक बड़ी चुनौती लेकर आ रहा है। अगर बसपा एकल चलो के तहत चुनाव में उतरी तो बसपा पूरी तरह से राजनीति की मु यधारा से गायब हो जाएगी। बसपा के लिए करो-मरो वाली स्थिति है। दिस बर तक चार राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलांगना में चुनाव हैं। इन चुनाव के बाद बसपा गठबंधन के विकल्प पर विचार करेगी।
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