सीएए पर भारत का अमेरिका को करारा जवाब: “आपको टिप्पणी का हक़ नहीं
भारत ने कहा - बहुलतावाद को समझाएं, तब बोलें! | सीएए कानून को लेकर विदेश मंत्रालय का अमेरिका को जवाब
CAA: भारत सरकार ने अमेरिका की सीएए पर चिंता जताने के बयान को सिरे से खारिज कर दिया है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है और यह देश की समावेशी संस्कृति और मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
भारत ने कहा, “बहुलतावाद को नहीं समझने वालों को बोलने की जरूरत नहीं”
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि जो लोग भारत की बहुलतावाद की संस्कृति को नहीं समझते हैं, उन्हें इस पर बयान देने का कोई हक़ नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि सीएए का उद्देश्य पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना है, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए थे.
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“यह कानून नागरिकता देने के लिए है, लेने के लिए नहीं”
जायसवाल ने इस बात पर भी जोर दिया कि सीएए (CAA) किसी भी समुदाय से नागरिकता छीनने के बारे में नहीं है, बल्कि देना है. यह कानून मानवीय सम्मान और मानवाधिकारों को बढ़ावा देता है. उन्होंने कहा कि जिन लोगों को भारत की स्वतंत्रता के बाद के इतिहास और बहुलतावाद की समझ नहीं है, उन्हें इस पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. भारत सरकार ने अपने सहयोगी देशों से इस कदम का स्वागत करने का आग्रह किया है.
अमेरिका ने जताई थी सीएए पर चिंता
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने भारत के सीएए (CAA) को लेकर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था कि वे इस कानून को लागू होते हुए करीब से देख रहे हैं. उनका कहना था कि धार्मिक स्वतंत्रता और सभी समुदायों के लिए समानता लोकतंत्र के मूल सिद्धांत हैं.
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गौरतलब है कि
- भारत सरकार ने 11 मार्च को सीएए के लिए नियमों को अधिसूचित किया था.
- यह कानून दिसंबर 2019 में पारित हुआ था, लेकिन नियमों के अभाव में लागू नहीं हो सका था.
- सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए थे, उन्हें भारतीय नागरिकता दी जा सकती है.
- इस कानून को लेकर भारत में काफी विरोध प्रदर्शन हुए थे. आलोचकों का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण है. वहीं सरकार का कहना है कि यह कानून किसी भी समुदाय के खिलाफ नहीं है
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