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Employment : रोजगार के अवसर बढ़ाने की बढ़ती चुनौती

Employment : देश में कोरोना संकट के बीच सख्त लॉकडाउन से उपजी बेरोजगारी का असर अभी बना हुआ है। अब रूस-यूक्रेन युद्ध से उद्योग-व्यापार में मंदी की लहर के बीच बेरोजगारी की चिंताएं फिर सामने दिखाई दे रही हैं।

हाल ही में 5 जुलाई को प्रकाशित सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन की रिपोर्ट के मुताबिक मई 2022 में देश में जो बेरोजगारी दर 7.12 फीसदी थी, वह जून 2022 में बढ़कर 7.80 फीसदी पर पहुंच गई है। बढ़ती बेरोजगारी से संबंधित हाल ही में प्रकाशित जनवरी से मार्च 2022 की अवधि पर आधारित सावधिक श्रम शक्ति सर्वे (पीएलएफएस) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस समय देश में रोजगार सृजन की स्थिति सुधारना जरूरी है। देश में आर्थिक गतिविधियों में सुधार के साथ बढ़ती श्रम शक्ति के लिए नए रोजगार अवसर निर्मित करने की अहम चुनौती है।

गौरतलब है कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार के मंत्रालयों एवं विभागों में डेढ़ साल के भीतर 10 लाख नियुक्ति का निर्देश दिया है। पिछले साल दिसंबर 2021 में संसद में बताया गया था कि केंद्र सरकार के विभागों में एक मार्च, 2020 तक 8.72 लाख पद खाली पड़े हैं। यह बात महत्वपूर्ण है कि देश में बड़ी संख्या में युवा सरकारी नौकरियों में करियर अपनी पहली पसंद मानते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के द्वारा बड़ी संख्या में नौकरियों की घोषणा सरकारी नौकरियों के प्रति आकर्षण रखने वाले युवाओं के लिए बहुत राहतकारी फैसला है।

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लेकिन केवल सरकारी नौकरियों से रोजगार की बढ़ी हुई चुनौतियों का सामना नहीं हो सकेगा। इस बड़ी चुनौती के समाधान के लिए कई रणनीतिक कदमों की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। इसमें कोई दो मत नहीं कि पिछले पांच-छह वर्षों से बेरोजगारी ऊंचे स्तर पर है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 में बेरोजगारी चार दशक के ऊंचे स्तर पर रही। यद्यपि कोरोना काल में सरकार ने उद्योग-कारोबार से घटते हुए रोजगार को बचाने के लिए अनेक पहल की, साथ ही स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए भी विशेष वित्तीय योजनाएं लागू थीं।

वर्ष 2020 में आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के साथ-साथ आमदनी, मांग, उत्पादन और उपभोग में वृद्धि से रोजगार की चुनौती कम करने की कोशिश की गई। फिर भी देश में कोरोना संकट के बीच सख्त लॉकडाउन से उपजी बेरोजगारी का असर अभी बना हुआ है। इतना ही नहीं अब रूस-यूक्रेन युद्ध से उद्योग-व्यापार में मंदी की लहर के बीच बेरोजगारी की चिंताएं फिर सामने दिखाई दे रही हैं।
नि:संदेह देश में वर्ष 1991 से उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के करीब तीन दशक बाद अब निजी क्षेत्र रोजगार के मामले में सरकारी क्षेत्र से बहुत आगे है।

देश में निजी क्षेत्र में रोजगार कितने बढ़े हैं इसका अंदाज वित्त मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित मई 2022 की बुलेटिन से लगाया जा सकता है। इस बुलेटिन के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) के सब्सक्राइबर्स में रिकॉर्ड 1.2 करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई है। यह बात महत्वपूर्ण है कि देश में अस्थायी और ठेके पर काम करने वाले कामगारों (गिग वर्कफोर्स) की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। नीति आयोग की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इस समय देश में करीब 77 लाख गिग वर्क फोर्स है जिसकी संख्या बढ़कर 2029-30 तक 2.35 करोड़ होगी।

लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या बिना प्लेटफॉर्म खानपान पहुंचाने वाले, कैब सेवाएं देने वाले व अन्य सर्विस व मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिग वर्कर्स के सामने सामाजिक सुरक्षा की बड़ी चिंताएं हमेशा सामने खड़ी दिखाई देती हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में भी रोजगार के अधिक से अधिक अवसर सृजित करने और उसके लिए नई पीढ़ी को तैयार करने की रणनीति पर ध्यान देना होगा। यह जरूरी है कि हम केंद्र सरकार के मंत्रालयों में नौकरियों के लिए बड़े पैमाने पर भर्ती के परिदृश्य के बीच कोविड-19 के बाद देश और दुनिया में रोजगार को लेकर दिखाई दे रहे परिदृश्य को भी ध्यान में रखें।

वस्तुतः अब देश और दुनिया में परंपरागत रोजगारों के समक्ष चुनौतियां बढ़ गई हैं और डिजिटल रोजगार छलांगें लगाकर बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। कोविड-19 ने नए डिजिटल अवसर पैदा किए हैं, क्योंकि देश और दुनिया की ज्यादातर कारोबार गतिविधियां अब ऑनलाइन हो गई हैं। वर्क फ्रॉम होम (डब्ल्यूएफएच) करने की प्रवृत्ति को व्यापक तौर पर स्वीकार्यता से आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिला है। ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के चलते जहां कई क्षेत्रों में रोजगार कम हो रहे हैं, वहीं डिजिटल अर्थव्यवस्था में रोजगार बढ़ रहे हैं।

इस समय कोविड-19 और यूक्रेन युद्ध की वजह से पैदा हुए रोजगार संकट को दूर करने के लिए सरकार के द्वारा बड़े स्तर पर रोजगार पैदा कर सकने वाली परियोजनाओं के बारे में नए सिरे से सोचने की जरूरत है। 1930 की आर्थिक महामंदी के समय अर्थशास्त्री किंस ने मंदी का अर्थशास्त्र प्रस्तुत करते हुए लोक निर्माण कार्यों को रोजगार एवं आय बढ़ाने का महत्वपूर्ण आधार बताया था। ऐसे में इस समय रोजगार चुनौतियों के मद्देनजर राष्ट्रीय एवं स्थानीय दोनों ही स्तरों पर लोक निर्माण कार्यक्रम से रोजगार बढ़ाना जरूरी हो गया है।

जिस तरह गांवों में मनरेगा रोजगार का प्रमुख माध्यम बन गई है, उसी तरह शहरी बेरोजगारों के लिए भी योजना की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है। हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार अपनी घोषणा के अनुरूप आगामी डेढ़ वर्ष में 10 लाख नई नौकरियों के मौके युवाओं की मुट्ठियों में सौंपने में कामयाब होगी। हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार की तरह राज्यों में भी राज्यस्तरीय नई नौकरियों के लिए भर्ती का बड़ा अभियान चलाया जाएगा।

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