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UP Bureaucracy: हवा-हवाई साबित हो रहे ‘सीएसटी’ में हुए नियुक्ति घोटाले की जांच!

आईएएस अफसरों के ठेंगे पर है भर्ती घोटाले की जांच के आदेश

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  • घोटालेबाजों के बौने साबित हो रहे हैं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री

लखनऊ। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार को नौकरियों के मामले में भाई-भतीजावाद के आरोप लगाते हुए आए दिन घेरते हैं, लेकिन उनके अधीन आने वाले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद में (सीएसटी) वर्ष 2016 में नियम-कानून और प्रतिबंध के बावजूद हुई अवैध नियुक्तियों के मामले न तो आज तक जांच पूरी हुई और न ही अवैध नियुक्तियों पर कोई कार्रवाई। इससे योगी सरकार की भ्रष्टïाचार के प्रति जीरो टॉलरेंसी की नीति के दावे हवा-हवाई साबित हो रहे हैं।

तीन-तीन दिग्गज आईएएस नहीं कर पाए पूरी जांच आपको बताते चले कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नियुक्ति पत्र वितरण के कई कार्यक्रमों में यह बात कह चुके है कि पूर्ववर्ती अखिलेश यादव की सरकार में दी जाने वाली नौकरियों में भाई-भतीजावाद खूब चलता था। अब आप इसका प्रत्यक्ष उदाहरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (सीएसटी) में देख सकते हैं। नियुक्तियों पर रोक के बावजूद नियमों और अर्हता को ताक पर रखकर अवैध नियुक्तियां हुईं थी। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन अवैध नियुक्तियों की जांच के लिए केन्द्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार तक खूब शिकायतें हुईं। लेकिन 2017 से लेकर 2025 तक हुई शिकायतों पर जांच के आदेशों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि अखिलेश यादव सरकार में हुई नियुक्तियों के घोटाले को कोई ‘अदृश्य ताकत’ दबाने की पूरी कोशिश कर रही है। यही वजह है कि जहां तीन-तीन दिग्गज पूर्व आईएएस अफसरों को इस मामले की जांच सौंपी गई थी आज तक पूरी नहीं हुई वहीं वर्तमान समय में कई आईएएस अफसर इस नियुक्ति घोटाले को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर जांच को दबाने में लगे हुए हैं। घपलेबाजों के आगे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री के आदेश बौने साबित हो रहे हैं। इस नियुक्ति घोटाले में जिम्मेदार अफसरों ने चुप्पी साध रखी है।

9 साल से हर शिकायत, हर जांच दबी

उल्लेखनीय है कि 21 सितम्बर 2017 को शिकायतकर्ता वीरेन्द्र मेहता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हलफनामे के साथ शिकायत की थी। इस पर 11 अक्टूबर 2017 को विज्ञान और पूर्व प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्री के पूर्व निजी सचिव डी.एन. सिंह ने प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सीएसटी में हुई नियुक्तियों में घोटाले की जांच के लिए पत्र लिखा था। इस पत्र के बाद मुख्यमंत्री के पूर्व विशेष सचिव अमित सिंह ने 21 जनवरी 2018 को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर 15 दिन के अंदर नियुक्ति घोटाले की आख्या मांगी।

मामला ताकतवर लोगो का होने के कारण 27 मार्च 2018 को पूर्व प्रमुख सचिव हेमंत राव ने राजस्व परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रवीर कुमार को जांच सौंपी। लगभग एक साल तक जांच रूकी रही। इसी बीच प्रवीर कुमार रिटायर हो गए। इसके बाद 5 सितम्बर 2019 को पूर्व अपर मुख्य सचिव कुमार कमलेश ने इस नियुक्ति घोटाले की जांच प्राविधिक शिक्षा विभाग की पूर्व प्रमुख सचिव श्रीमती राधा एस. चौहान को सौंपी। श्रीमती राधा एस. चौहान की केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति जाने के बाद मई 2022 में इस जांच को फिर राजस्व परिषद के पूर्व अध्यक्ष संजीव कुमार मित्तल को सौंपी। इन आईएएस महोदय ने भी जांच पूरी नहीं की और रिटायर हो गए। तब से यह जांच ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।

UP News: नियुक्तियों पर रोक के बावजूद सीएसटी में हुई अवैध नियुक्तियां

15 मई 2012 को नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव राजीव कुमार ने एक शासनादेश के जरिए लोकसेवा आयोग और कोर्ट के अनुपालन की जाने वाली भर्तियों को छोडक़र सभी प्रकार की भर्तियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। 5 जुलाई 2013 को पूर्व मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने भर्ती पर प्रतिबंध के शिथिलीकरण के संबंध में सभी विभागों को निर्देशित किया गया कि अपरिहार्य स्थिति में अगर कोई नियुक्ति की जानी है तो पत्रावली कार्मिक विभाग के माध्यम से वित्त विभाग की परामर्श के बाद नियुक्ति होगी। इन प्रतिबंधों की जानकारी के बावजूद विज्ञान एवं प्रौद्योगिक परिषद ने सितम्बर 2016 और अक्टूबर 2016 में तीन पदों ज्वाइंट डायरेक्टर इंफार्मेंशन एंड टेक्नोलॉजी, ज्वाइंट डायरेक्टर रिसर्च, ज्वाइंट डायरेक्टर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर डेवलम्पमेंट एंड इन्नोवेशन कई समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करवा कर अपने करीबियों को नौकरियों की रेवड़ी बांटी।

नियम और अर्हता ताक पर, घपलेबाज बना सलाहकार

शिकायतों में आरोप लगाए गए कि संयुक्त निदेशक पद के लिए निकाले गए विज्ञापन में डा. राजेश कुमार गंगवार ने आवेदन ही नहीं किया था। डा. राजेश कुमार गंगवार ने सीएसटी/03/2016 के लिए किया था। स्क्रीनिंग के लिए गठित समिति ने डा. गंगवार को नॉट फॉर एलिजबेल पाया। इसके बाद इन महोदय का चयन संयुक्त निदेशक रिसर्च पर कर दिया गया। इसी तरह संयुक्त निदेशक आईटी के पद पर सुश्री पूजा यादव की नियुक्ति हुई। शिकायतों में कहा गया कि सुश्री पूजा यादव अर्हता और अनुभव न रखने के कारण भी नियुक्ति दी गई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि नक्षत्रशाला के राज्य परियोजना समन्वयक अनिल कुमार यादव पर कई घपले और घोटाले के आरोप होने के बावजूद 20 अप्रैल 2016 को सीएसटी के निदेशक और सचिव का चार्ज भी दिया गया। इन महोदय की नियुक्ति की मूल पत्रावली ही गायब है। प्रशासनिक अधिकारी राजेश कुमार दीक्षित ने 5 अप्रैल 2019 को वजीरगंज थाने में एफआईआर दर्ज करवाई थी। संयुक्त निदेशक आईटी के पद पर नियुक्ति की गई पूजा यादव अनिल कुमार यादव की सगी भांजी हैं। सीएसटी के पूर्व सचिव ने अनिल यादव और पूजा यादव को नोटिस जारी कर फैमली ट्री के बारे में पूछा था। कई नोटिसों के बावजूद कोई जवाब नहीं दिया था। वैज्ञानिक अधिकारी पद पर नियुक्त सुमित श्रीवास्तव की नियुक्ति सवालों के घेरे में है। शिकायत में दावा किया गया है कि इन महोदय दो-दो विश्वविद्यालयों से एम एससी फिजिक्स में डिग्री ले रखी है।

सीएसटी और विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद विभाग के सूत्रों का कहना है कि नियुक्तियों का घोटाला न खुले इसको हर स्तर से दबाया जा रहा है। हैरत की बात यह है कि मोदी और योगी सरकार इस नियुक्ति के घोटाले की जांच के लिए कई प्रयास किए हैं, लेकिन सभी प्रयास असफल हुए हैं। विभाग के प्रमुख सचिव पंधारी यादव और कार्यवाहक निदेशक शीलधर यादव इन अवैध नियुक्तियों की जांच को किए अदृश्य शक्ति के निर्देश पर दबा रखा हुआ है।

सबने साधी चुप्पी

इस प्रकरण पर संयुक्त निदेशक रिसर्च डा. गंगवार, संयुक्त निदेशक आईटी सुश्री पूजा यादव, वैज्ञानिक अधिकारी सुमित श्रीवास्तव से सम्पर्क किए जाने पर कोई भी जवाब नहीं दिया है। यही हाल विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्री अनिल कुमार, प्रमुख सचिव पंधारी यादव और सीएसटी के कार्यवाहक निदेशक शीलधर यादव ने कोई भी जवाब नहीं दिया। सभी ने चुप्पी साध ली है।

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