माया के सियासी मायाजाल में फंसते अखिलेश!
- मुस्लिमों के दिल में तेजी से समा रही है बसपा
- रामपुर और मैनपुरी का चुनाव तय करेगा सपा का भविष्य
राजेन्द्र के. गौतम
लखनऊ। यूपी के मुस्लिम वोट बैंक को लेकर सपा और बसपा में फिर रार तेज हो गई है। इसी रार के तहत सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने गोला विधान सभा में मिली हार का ठीकरा बसपा पर फोड़ते हुए भाजपा (BJP) की बी टीम बताने में जरा भी देरी नहीं लगाई वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने अखिलेश यादव पर पलटवार करते हुए दावा किया कि बसपा ही मोदी का विजय रथ रोक सकती है। यह बात रामपुर और मैनपुरी के चुनाव के परिणाम से साबित हो जाएगी। बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) का मुस्लिम समाज को जोडऩे के सियासी मायाजाल में सपा मुखिया अखिलेश यादव फंसते जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि यूपी के मुस्लिमों ने नए राजनीतिक रहनुमा की तलाश शुरू कर दी है। मुस्लिमों के बीच ‘मुल्ला मुलायम’ (Mulla Mulayam) के रूप में लोकप्रिय नेता मुलायम सिंह यादव (Mulayam singh Yadav) के निधन के बाद से अल्पसं यक समाज उनकी कमी अखर रही है। यही वजह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जहां राजनीतिक दल मुस्लिम वोट बैंक पर कब्जे को लेकर डोरे डालना शुरू कर दिया हैं वहीं मुस्लिम नेता भी ‘सुरक्षित आशियां’ यानी नए राजनीतिक दल को ढूंढना शुरू कर दिया है। इस अभियान में जहां भाजपा और बसपा ने तेजी पकड़ ली है वहीं सपा पिछड़ रही है।
उल्लेखनीय है कि सियासत में यूपी के मुस्लिम नेताओं में आजम खान (azam khan) , मुक्खतार अंसारी (Muqtaar Ansari), नसीमुद्दीन सिद्दीकी (Naseemuddin Siddiqui), इमरान मसूद शफीकुर रहमान बर्क (Imran Masood Shafiqur Rahman Burke) , नाहिद हसन (Nahid Hassan), हाजी फजलुर्रहमान (Haji Fazlur Rahman), एसटी हसन (ST Hassan) , कुंवर अली दानिश (Kunwar Ali Danish), अफजाल अंसारी (Afzal Ansari), हाजी फजर्लुरहमान (Haji Fazlur Rahman), गुड्डू जमाली (Guddu Jamali) हैं। इन मुस्लिम नेताओं के होते हुए जो स मान और समर्थन सपा के संस्थापक दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव को मिला वह किसी भी राजनीतिक दल के मुस्लिम नेताओं को भी नहीं मिला। मौजूदा परिस्थितियों में बड़े मुस्लिमों नेताओं में शुमार आजम खां और मु तार अंसारी व अफजाल अंसारी के सियासी वजूद खतरे में है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यूपी विधानसभा की 403 सीटों में से लगभग 143 विधानसभा सीटें मुस्लिम मतदाताओं के प्रभाव वहीं हैं। इनमें से 36 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम उ मीदवार अपने दम पर जीत सकते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के अलावा पश्चिमी यूपी में मुसलमान की बड़ी मौजूदगी है। सिर्फ पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी मुसलमान हैं। पश्चिमी यूपी में 26 जिले आते हैं, जहां विधानसभा की 136 सीटें हैं। यही आंकड़े राजनीतिक दलों को अपनी ओर खींच रहे हैं। मुस्लिमों के लिए धुर विरोधी मानी जाने वाले भाजपा भी मुस्लिम समाज को लुभाने के लिए पसमांदा समाज के कार्यक्रम आयोजित कर चुकी है।
जब तक सपा संस्थापक मुलायम सिंह जीवित रहे तब तक मुस्लिम समाज एकजुट होकर समाजवादी पार्टी को अपना समर्थन देता रहा। जिसका परिणाम 2022 के हुए विधान सभा के चुनाव में सपा के बढ़े हुए मत प्रतिशत से देखा जा सकता है। लेकिन सपा के अधिकतर मुस्लिम नेता सपा मुखिया अखिलेश यादव की नीतियों से असहज हैं। मुस्लिमों के मुद्दों पर जिस तरह से मुलायम सिंह बेबाकी रूप से खड़े होते हैं उस तरह से अखिलेश यादव न तो समर्थन करते हैं और सहयोग। आजम खां जैसे नेता पर मुकदमें और जेल यात्रा पर चुप्पी और अब विधायकी जाने पर पूरी तरह से चुप्प रहना मुस्लिम समाज को अखर रहा है। कई मुस्लिम नेता अपना नया राजनीतिक आशियां खोजना शुरू कर दिया है। इस कारण मुस्लिम समाज दुविधा में हैं उसके पास सीमित विकल्प हैं। पहला विकल्प कांग्रेस के साथ जाएं और दूसरा विकल्प बसपा के साथ।
बसपा सुप्रीमो मायावती ल बे समय से मुस्लिम समाज को पार्टी से जोडऩे की मुहिम चला रही हैं। साथ ही राजनीतिक भागेदारी के तहत विधान सभा और लोकसभा के चुनावों में पर्याप्त भागेदारी देती है। इन दिनों बसपा सुप्रीमो मुस्लिम मामलातों को लेकर काफी मुखरता से ट्विटर के माध्यम से उठाकर समर्थन कर रही हैं। लेकिन भाजपा की बी पार्टी के रूप में प्रचारित होने के कारण मुस्लिम समाज विश्वास नहीं कर पा रहा है। यह जरूर है कि शिक्षित मुस्लिम समाज मौजूदा परिस्थितियों को समझ रहा है और बसपा के प्रति थोड़ा सा उत्साहित है। इसकी वजह यह है कि मुस्लिमों का एक बड़ा चेहरा इमरान मसूद सपा को छोडक़र बसपा में शामिल हो गया है। मुस्लिम समाज के कई धुरंधर नेता जानते हैं यूपी में अब सपा के बजाए बसपा ही भाजपा को टक्कर दे सकती है। अगर बसपा सुप्रीमो ट्विटर के बजाए मुस्लिम समाज से सीधा संवाद करें तो स्थितियां बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। यूपी में कांग्रेस की स्थिति अभी इस लायक नहीं है कि वह भाजपा को सीधी चुनौती दे सके।
बसपा के एक रणनीतिकार के मुताबिक बसपा सुप्रीमो मायावती मुस्लिम समाज को विश्वास दिलाना चाहती है कि वही यूपी में भाजपा को रोक सकती हैं। भाजपा के विजय में सपा का बहुत बड़ा हाथ है। अधिकतर हुए चुनाव में सपा न तो अपना वोट बैंक यानी यादव वर्ग बनाए रख पाई और न ही मुस्लिम समाज की 100 प्रतिशत समर्थन के विश्वास पर खरा उतर पाई। यूपी के निकाय चुनाव में बसपा अपनी सोशल इंजीरियरिंग दलित-मुस्लिम पर फोकस कर दिया है। इसी रणनीति के तहत मुस्लिम हितों के मामले बसपा प्रमुखता से उठा रही है। जबकि सपा चुप है।
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