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इतिहास के सबसे बड़ी खोज , मध्य प्रदेश में मिला डायनासौर का अंडा !

Dinosaur egg found : नई दिल्ली करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर डायनासोर का बसेरा हुआ करता था, लेकिन बाद में उनका विनाश हो गया, लेकिन आए दिन कोई ना कोई डायनासोर से जुड़ी खोज आज भी हमारे अंदर उस दैत्याकार जीव की मौजूदगी दर्ज करा देती है। वैज्ञानिक डायनासोर को लेकर वक्त-वक्त पर हैरान करने वाले खुलासे करते रहते हैं। इस बीच अब मध्य प्रदेश से विशालकाय डायनासोर के अस्तित्व से जुड़ी एक और बड़ी दुर्लभ खोज सामने आई है, जिसको लेकर दावा किया गया कि संभवत: जीवाश्म इतिहास में पहली बार ऐसी खोज हुई है।

Dinosaur egg found : जीवाश्म इतिहास में पहली बार!

डायनासोर को पृथ्वी से विलुप्त हुए दशकों बीत चुके हैं, लेकिन आज भी लोगों के अंदर इस जीव से जुड़ी जानकारी हासिल करने की उत्सुकता रहती हैं। कोई ना कोई खोज इस जीव को लेकर लोगों को रोमांचित करती है। अबदिल्ली यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने मध्य प्रदेश से एक ‘एग-इन-एग’ डायनासोर के अंडे की खोज की है, जो शायद जीवाश्म इतिहास में पहली बार है, यूनिवर्सिटी ने एक बयान में यह दावा किया है।

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धार जिले के बाग इलाके में खोजा गया था अंडा

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह खोज एक “दुर्लभ और अहम खोज” है, क्योंकि अब तक सरीसृपों में कोई ‘ओवम-इन-ओवो’ यानी अंडे में अंडा नहीं पाया गया था। इस खोज को जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स के लेटेस्ट संस्करण में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि ऐबनॉर्मल टाइटानोसॉरिड डायनासोर अंडे का अंडा मध्य प्रदेश के धार जिले के बाग इलाके में खोजा गया था।

डायनासोर के जीवाश्मों के लिए जाना जाता है मध्य भारत

उन्होंने आगे कहा कि इससे यह अहम जानकारी पता लगाई जा सकती है कि क्या डायनासोर के पास कछुए और छिपकलियों या मगरमच्छ और पक्षियों के समान प्रजनन जीव विज्ञान था। आपको बता दें किमध्य भारत का अपर क्रेटेशियस लैमेटा फॉर्मेशन लंबे समय से डायनासोर के जीवाश्मों (कंकाल और अंडे के अवशेष दोनों) की खोज के लिए जाना जाता है।शोधकर्ताओं ने बाग के पास पडलिया गांव के पास बड़ी संख्या में टाइटानोसॉरिड सॉरोपॉड घोंसलों का पता किया।

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इससे पहले कभी नहीं मिले इस तरह अंडे में अंडे

इन घोंसलों का अध्ययन करते वक्त शोधकर्ताओं को एक ‘असामान्य अंडा’ मिला। रिसर्च टीम ने असामान्य अंडे सहित 10 अंडों का एक सॉरोपॉड डायनासोर का घोंसला पाया, जिसमें दो निरंतर और गोलाकार अंडे की परतें थीं, जो एक अंतर से अलग होती हैं, जो डिंब-इन-ओवो यानी दूसरे अंडे के अंदर एक अंडा पक्षियों की याद दिलाती हैं। ऐसे में इनकी पहचान टाइटानोसॉरिड सौरोपोड डायनासोर के अंडों के तौर पर की गई। इससे पहले डायनासोर के इस तरह अंडे में अंडे नहीं मिले थे।

डीयू के शोधकर्ता डॉ. हर्ष धीमान का बयान

बयान में कहा गया है कि अतीत में यह सुझाव दिया गया था कि डायनासोर का प्रजनन कार्य कछुओं और अन्य सरीसृपों के समान होता है। शोध के मुख्य लेखक और डीयू के शोधकर्ता डॉ. हर्ष धीमान ने कहा कि टाइटानोसॉरिड घोंसले से डिंब-इन-ओवो अंडे की खोज इस संभावना को खोलती है कि सॉरोपॉड डायनासोर में मगरमच्छ या पक्षियों के समान एक डिंबवाहिनी (ओविडक्ट) थी और वे पक्षियों की अंडे देने वाली विशेषता के एक मोड के लिए अनुकूलित हो सकते हैं।


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