मथुरा : जवाहरबाग काण्ड में पुलिस के खिलाफ मुकदमे की नहीं मिली इजाजत
Jawahar bagh kand : मथुरा। उत्तर प्रदेश के मथुरा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट राकेश सिंह ने बहुचर्चित जवाहरबाग काण्ड में पुलिस के खिलाफ अभियोग पंजीकृत करने के प्रार्थनापत्र को अस्वीकार कर दिया है। इस मामले में स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रहियों के नेता रामवृक्ष के गुरूभाई राज नारायण शुक्ला ने यह अर्जी अदालत के समक्ष दायर की थी। शुक्ला के अधिवक्ता एलके गौतम ने बताया कि उनका मुवक्किल सीजेएम के आदेश के खिलाफ न्यायालय में अपील करेगा। उन्होंने बताया कि सीजेएम ने प्रार्थनापत्र पर सुनवाई के बाद आदेश को सुरक्षित कर लिया था तथा जब आदेश सुनाया गया तो सीबीआई और सदरबाजार पुलिस का हवाला देते हुए यह कहा गया था कि रामवृक्ष जीवित नहीं है। आदेश में पुलिस द्वारा उसके अपहरण करने पर कुछ भी नहीं कहा गया है, जबकि अपहरण के बारे मे अदालत के निर्णय के बाद ही पता चलेगा कि रामवृक्ष की मृत्यु कैसे हुई थी।
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उन्होंने बताया कि शुक्ला ने 22 नवंबर 2021 को 156 (3) सीआरपीसी के तहत सीजेएम की अदालत में एक प्रार्थनापत्र देकर पुलिस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध अदालत से किया था। प्रार्थनापत्र में कहा गया है 02 जून 2016 की शाम को जब पुलिस, जवाहरबाग में चारदीवारी तोड़कर घुसी थी तो लोग सुरक्षित स्थानों की ओर भागने लगे थे। इसी शाम शुक्ला स्वयं, रामवृक्ष, विवेक यादव, अमित गुप्ता, हरनाथ सिंह आदि जवाहरबाग से किसी प्रकार निकलकर पुलिसलाइन आ गए थे। कुछ ही देर में एक बोलैरो गाड़ी से कुछ पुलिसकर्मी आए और कल्ट लीडर रामवृक्ष को ले गए एवं बाकी लोगों को बाद में जेल में बन्द कर दिया गया था। आरोप है कि उसके बाद कल्ट लीडर को न तो किसी न्यायालय के समक्ष पेश किया गया और ना ही जेल भेजा गया था, जिससे शक की सुई पुलिस के द्वारा अपहरण करने की ओर घूमती है।
अधिवक्ता ने बताया कि आरोप तो यह भी है कि कई बार पूछने के बावजूद पुलिस ने उनके नेता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी, तो उनके मुवक्किल ने इस अर्जी के साथ अदालत का सहारा लिया था, कि पुलिस के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद वास्तविकता का खुलासा हो जाएगा। सीजेएम के आदेश में 02 जून 2016 की घटना का संक्षेप में विवरण देते हुए बताया गया है कि किस प्रकार हथियारबन्द रामवृक्ष के लोगों और पुलिस में मुठभेड़ हुई थी। इसमें मथुरा के तत्कालीन एसपी मुकुल द्विवेदी एवं फरह थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष संतेाष यादव समेत 28 लोग मारे गए थे तथा काफी लोग घायल हुए थे। इसकी रिपोर्ट थाना सदर बाजार मथुरा में गंभीर धाराओं में उस समय लिखी गई थी। सीजेएम के आदेश में यही भी लिखा है कि आख्या के साथ संलग्न सीबीआई के पत्र के अनुसार रामवृक्ष की मृत्यु हो चुकी है। यही नहीं थाने की आख्या में भी सत्याग्रहियों के नेता की मृत्यु अंकित है। आदेश में राज नारायण शुक्ला के प्रार्थनापत्र को अस्वीकृत किया गया है।
गौरतलब है कि जनवरी 2014 में स्वयंभू सत्याग्रही नेता रामवृक्ष ने जिला प्रशासन से दो दिन के लिए जवाहर बाग में रुकने की इजाजत मांगी थी। सत्याग्रही अपने गुरू बाबा जय गुरूदेव की मृत्यु प्रमाणपत्र लेने के लिए रुके थे किंतु वे उसके बाद से 02 जून 2016 तक जवाहरबाग में ही रुके रहे। उस समय आरोप तो यह भी था कि रामवृक्ष को तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री का वरदहस्त प्राप्त था। तत्कालीन जिलाधिकारी राजेश कुमार के द्वारा सख्त कदम उठाने के कारण ही जवाहरबाग की लगभग 300 एकड़ जमीन को कब्जा मुक्त कराना संभव हो सका था।
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